Friday, August 22, 2008

शुद्वतावादियों से कैसे बचे हिंदी

कल ही वरिष्‍ठ साहित्‍यकार व साहित्‍य आलोचक डा नामवर सिंह ने जेएनयू में दिये गये एक व्‍याख्‍यान में कहा कि हिंदी को सबसे अधिक शुद्वतावादियों से खतरा है. उनका मानना है कि भाषा का क्रमिक विकास जारी रहता है. हिंदी के मनीषी नामवर जी का पुरा व्‍याख्‍यान प्रिंट माध्‍यम से सामने नहीं आ पाया है,इसलिए कतिपय बातों पर स्‍पष्‍टीकरण प्राप्‍त करना अनिवार्य लगता है. शुद्वतावादियों को लोग पहले तो पुचकारते है फिर भाषा के विकास को लेकर, उन्‍हें अपने डंडे से हांकने का प्रयास किया जाता है.शुद्वतावादी का चोला पहनकर मठाधीशी करने के उपरांत लगता है कि कई लोग इससे उबने लगे है. हिंदी निसंदेह 60 वर्षो के बाद अपने मूल रुप से अलग दि खने लगी है, उसके तेवर व सौंदर्य का भी विकास क्रमिक रुप से हुआ है. वर्तमान पीढी तकनीक पर सवार होकर अपने भाषा को विकसित करने में लगी है. संभव है कि हिंदी भाषा में कई नए शब्‍द व उसके रुप बदल रहे है. लेकिन शुद्वतावाद से अलग होने पर व्‍याकरण के बंधन से भी मुक्‍त होने को साहित्‍य प्रेमी प्रेरित होंगे. भडास सहित कई ब्‍लॉगवार्ता पर इसके रुप भी देखने को मिल रहे है. फिर तो मुक्‍ता अवस्‍थ्‍ाा में क्‍या हिंदी जिन मूल्‍यों व विचारों को लेकर आगे बढ रही थी वह आगे कायम रह पायेगा. शुद्वतावाद से अलग होकर निसंदेह हिंदी का विकास होगा, लेकिन उसे नये रुप में आगे बढने का मार्ग भी प्रशस्‍त करना होगा. हिंदी के विकास में साहित्‍यकारों के साथ 20सदी के पूर्वाद्व में नए नए पत्रों के द्वारा पत्रकारों के द्वारा भी भाषा के रुप गढे जा रहे थे. विदेशों से आने वाली खबरों को जनता तक पहुंचाने के लिए अंग्रेजी भाषा के सटीक हिंदी रुपांतरण के लिए वे अथक प्रयास कर रहे थे. इनमें कई अनाम साहित्‍यकार पत्रकार थे,जिन्‍हें हिंदी के वर्तमान आलोचकों द्वारा लगभग विस्‍म़त सा कर दिया गया है. हिंदी अपने जन्‍म काल से ही शुद्व रुप से अपने स्‍व को विकसित करने के क्रम में विभिनन देशी विदेशी भाषाओं को समाहित करती रही है. दूनिया की अन्‍य भाषाओं के साथ भी ऐसा ही हुआ है. जापान में मेइजी ने समाज सुधार के लिए चयनित नवयुवकों को अमेरिका भेज कर उनकी भाषा व तकनीक के ज्ञान प्राप्‍त करने को प्रेरित किया था. उसका फलाफल हम आज देख सकते है. भारत में मैकाले ने भले ही गुलामी को पुख्‍ता करने के लिए अपनी शिक्षा नीति नि र्धारित की थी लेकिन उस शिक्षा नीति ने हिंदी व हिंदूस्‍तान के विकास में दूसरे रूप से सहयोग किया. हर किसी चीज के सकारात्‍मक पहलू को भी स्‍वीकारना चाहिये. शुद्वतावादियों से हिंदी को बचाने के नाम पर हिंदी का अहित न हो जाये, उसका रुप विक़त न हो जाये इसका भी ध्‍यान रखना होगा. जीवंत भाषा व समाज बदलते रहते है, हिंदी बदली है, हिंदूस्‍तान बदला है, परिवर्तन संसार का नियम है. हिंदी नहीं बदली तो उसका भी हाल संस्‍क़त की तरह हो जायेगा. हिंदू शब्‍द की तरह हिंदी भी भारत में नहीं बना, ईरान से आया है ऐसे ही कई नए शब्‍द आयेंगे,जुडेंगे.
उसकी निजता बरकरार है व रहेगी, इस निजता के साथ छेडछाड संभव नहीं है. बाकि वाहय आवरण तो सदा बदलते रहेंगे.

No comments: