Saturday, February 4, 2012

मानसिक रूप से बीमार बच्चे की तरह हैं भारतीय लोकतंत्र

सुप्रीम कोर्ट का २ जी स्पेक्ट्रम मामले में दिया गया फैसला भ्रष्टाचार के खिलाफ जबरदस्त हमला हैं। भारतीय लोकतंत्र का दुखद पहलु यह हैं की जितना देर से सरकारी राशी के गबन या भ्रष्ट आचरण की जाँच होती हैं, उससे कही ज्यादा देर न्याय निर्णय के आने में लग जाता हैं । लम्बी सुनवाई के बाद जब फैसला होता भी हैं तो उसे अमलीजामा पहनने में और भी देर हो जाती हैं । न्याय की जरुरत ऐसी हैं जो न्याय होता दिखे। आम आदमी के गाढ़ी खून की कमाई को डकार कर कैसे कोई रह सकता हैं। संसद में जिस प्रकार की नुख्ताचिनी होती हैं , वह लोगो के गले नहीं उतरती। भारतीय लोकतंत्र के हालत मानसिक रूप से विकलांग बच्चे की तरह हैं। ६० साल से ऊपर की उम्र हो चुकी लेकिन लोकतान्त्रिक मानसिकता १५ साल के बच्चे की तरह हैं । सरीर रोग से जीर्ण शीर्ण होने चला हैं लेकिन हम हैं कि अभी लेमनचूस के लिए लड़ रहे हैं । भारतीय प्राकृतिक संसाधनों कि जिस प्रकार बंदरबाट कि जा चुकी हैं उससे अव्यवस्था होनी ही हैं । हम भारत के लोग लोकतान्त्रिक गणराज्य का दावा करते हैं और मानवता कि दुहाई देते हैं किन्तु हर नागरिक दुसरे के अधिकारों के अतिक्रमण में जुटा हैं ।
२ जी या कोई भी घोटाला नियमो कायदों को तक पर रख कर कैसे हो जाता हैं जबकि एक सामान्य आदमी को राशन कार्ड बनाने से लेकर अस्पताल में इलाज करने तक कु व्यवस्था का अंतहीन दौर देखना पड़ता हैं । अन्ना के समर्थक हो या विरोधी, गाँधी के अनुयायी हो या सुभाष के भ्रष्टाचार के कोढ़ से कौन अछूता हैं। पर्यटन , उधोग या उपभोक्ता वर्ग को संतुष्ट करने वाले सामानों के ब्रांड अम्बेसडर बनाने से तो बेहतर हैं सामाजिक राजनीतिक कुरीतियों के खिलाफ शंखनाद करे। पोलियो को जड़ से मिटाए , कुपोषण दूर करे। बच्चो को शुद्ध दूध उपलब्ध कराए, देश में उर्जा शक्ति, सैन्य शक्ति का विकास करे।