Saturday, March 27, 2010

भारत के समुज्ज्वल भविष्य के लिए शक्ति संग्रह जरुरी

भारतीय राष्ट्रीय चेतना के विकास के लिए शक्ति का संग्रह करना जरुरी हैं। एक सबल राष्ट्र ही विश्व में अपने सर को ऊँचा उठाकर कर चल सकता हैं। भारत के कण कण में आध्यत्मिक शक्तिया निवास करती हैं। हम अपनी सुसुप्त शक्तियों को जागृत करके एक सबल व् सुदृढ़ राष्ट्र का निर्माण कर सकते हैं। इसके लिए प्रत्येक भारतीय को अपने देश के प्रति अपनी निगाहों में ऊँचा उठाना होगा। हमें छोटी छोटी छुद्र भावनाओ का तिरस्कार करना होगा । क्या हम एक संप्रभु देश में निवास नहीं करते हैं। क्या देश की अचछी बातो से जुड़ने का मतलब कुछ और हो जाना हैं। आखिर कब तक हम जाति धर्म व् दलों व् कुनबो में बटे रहेंगे। आज कौन ऐसा हैं जिसे अपने देश से मतलब नहीं हैं, कौन इससे अपने को ज्यादा महान समझता हैं। जो ऐसा समझते हैं वो भूल रहे हैं की उनके न जाने कितने पूर्वज इसी धरती के नीचे दफन किये जा चुके हैं, उनकी मिटटी मिटटी में मिल चुकी हैं। एक गिलहरी, गौरया, नदिया सभी इससे जन्म लेते हैं, फिर विलुप्त हो जाते हैं। थोड़ी सी असावधानी आपके साथ इस देश को भी खतरे में डाल सकती हैं । जापान से सीखे कैसे शक्ति संवर्धन की जा सकती हैं। कैसे अपने देश को समृद्ध व् सुसंगठित बनाया जा सकता हैं।

Thursday, March 18, 2010

नोबेल और लालटेन का विज्ञापन

नोबेल पुरस्कार और लालटेन के विज्ञापन में भला क्या समानता हो सकती हैं। शायद आप भी अचम्भित हो कर रह जाये लेकिन हैं और इसका नजारा भी देखने को मिला हैं। हैं बिलकुल खरी व् सच्ची बात। आप माने या न माने बिहार के मुख्यमंत्री, उपमुख्य मंत्री, विधान सभा के अध्यछ, विधान परिषद् के सभापति, विधान मंडल के दो सौ से अधिक सदस्यों के साथ प्रेस और मिडिया के साथियों ने भी इस सत्य को देखा हैं। दुनिया के जाने माने पर्यावरणविद और नोबेल पुरस्कार प्राप्त डाक्टर आरके पचौरी ने पटना में आयोजित एक पर्यावरण सबंधी सेमिनार में एक ओर जहा पर्यावरण की रछा पर बल दिया वही दूसरी ओर उनके साथ पहुची सहयोगी अकंछ चौरे ने उनके सहयोग से सौर उर्जा संचालित लालटेन के चार प्रकार के मॉडलो की भी चर्चा की। बकायदा तिन और पञ्च मिनट की फ़िल्म बनाकर प्रदर्शित भी की गयी। इस सेमिनार का आयोजन बिहार विधान परिषद् की पर्यावरण सम्बन्धी समिति ने आयोजित की थी। इसमें विधान मंडल के सभी सदस्यों को आमंत्रित किया गया था। मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने उन्हें स्पस्ट किया की बिहार सरकार हर घर में रौशनी करना चाहती हैं लेकिन इसके लिए सौर उर्जा का बिहार मॉडल विकसित करना होगा। बिहार में कई बार लोगो द्वारा सौर लालटेन की गुणवत्ता को लेकर प्रश्न व् शिकायते की जाती हैं । बिहार में अमीर गरीब सब बिजली की कमी से जूझ रहे हैं। यह कैसी पर्यावरण बचने की चिंता हैं यह मेरी तो समझ में नहीं आ रहा हैं आप समझे तो जरुर बतायेंगे। डा पचौरी द्वारा कभी हिमालिय ग्लेशियर के वर्ष २०३५ तक पिघलने की बात की जाती हैं तो कभी तेल की बढती खपत पर तो कभी मांसाहार त्यागने के लिए सलाह दी जाती हैं। वे बराबर धरती पर बढ़ते बोझ को लेकर चिंतित दीखते हैं । क्या यह नोबेल पुरस्कार कभी कवि गुरु रविंद्रनाथ टैगोर को इसी लिए दिया गया की उन्हें ठुकराने का भी फैसला करना पड़े । पाश्चात्य संस्कृति की इसी धारणा को हम तथाकथित आधुनिक कहलाने वाले लोग अनुकरण करते हैं। अगर करते हैं तो फिर भविष्य की कल्पना करे.