Tuesday, March 27, 2012

बोलियों के बीच खड़ी बोली हिंदी

भारत में कई बोलिया हैं जो हिंदी पट्टी में बोली और हिंदी भाषियों के बीच स्वीकारी जाती हैं। २०११ की जनगणना में इनकी संख्या भी दर्शायी गयी हैंजो की दो अंको में हैं। साथ ही एक सर्वमान्य तथ्य हैं कि खड़ी बोली को ही हिंदी मान लिया गया हैं। अवधी, ब्रज, भोजपुरी सहित अन्य बोलिया हिंदी के पास नहीं दिखती। खड़ी बोली का प्रयोग संपर्क भाषा के रूप में न केवल हिंदी पट्टी में बल्कि अन्य क्षेत्रो में की जाने लगी हैं। ऐसे में वर्तमान हिंदी के मानक रूप को विस्तृत पटल पर ले जाने की आवश्यकता महसूस की जा रही हैं। हिंदी की नीरसता को दूर करने की दृष्टि से ऐसा करना जरुरी हैं । आम पाठको तक उसे ले जाने की पहल आवश्यक हैं। हिंदी भाषा का शब्द सामर्थ्य दिनों दिन बढे , उसकी सर्व ग्राहता में इजाफा हो। ऐसा नहीं की हिंदी की अन्य बोलियों में ताजगी और भावो की अभिव्यक्ति की क्षमता नहीं हैं। कई शब्द तो विशिष्टता के साथ अपनी अभिव्यक्ति में सफल हैं। दूसरा पक्ष ये भी हैं कि क्या मानक हिंदी में छेड़छाड़ की जानी चाहिए। क्या भाषा की शुद्धता की दृष्टी से ऐसा किया जाना उचित होगा। भाषा को कोई एक मानक आधार तो चाहिए ही जिस पर रचना की प्रक्रिया निर्धारित की जा सके । यहाँ ध्यान रखने की जरुरत हैं कि संस्कृतनिष्ठ हिंदी को अब गैर जरुरी मान लिया गया हैं। सुधि पाठक इसे अपनाने में कठिनाई महसूस करते हैं। आज की युवा पीढ़ी तो कंप्यूटर के की बोर्ड पर हिंदी शब्दों को अंग्रेजी में लिखती हैं। उनके लिए तो क्लिष्ट हिंदी को भाव रूप को प्रस्तुत करना असंभव तो नहीं लेकिन मुश्किल भरा काम अवश्य हैं। फिर कैसे हमे विभिन्न बोलियों के बीच खड़ी बोली को रखना हैं या सब की स्वतंत्र सत्ता को गडमड करना हैं इस पर विचार करना होगा। लोकतान्त्रिक प्रणाली में सब बोलियों की अपनी अहमियत हैं तो क्या हमें खड़ी बोली के समक्ष अन्य बोलियों की प्रतिस्पर्धात्मक स्वरुप को खड़ा करना होगा। इससे इतर भी एक स्वरुप ये भी हो सकता हैं कि हमें सब को समान भाव से अंगीकार करते हुए उसे के नये स्वरुप को स्वीकार कर लेना होगा.