Friday, August 8, 2008
रामसेतू विवाद और कंब रामायण
राम सेतू विवाद के निपटारे के लिए हाल ही में केंद्र सरकार को अचानक साहित्य की शरण में जाना पडा. सुप्रीम कोर्ट में तमिल में मूल रूप से लि खे गये कंब रामायाण को उद्वत किया गया. इसी कंब रामायण का हिंदी अनुवाद बिहार राष्ट्रभाषा परि षद द्वारा दो खंडों में प्रकाशित किया गया है. इसका अनुवाद एनवी राजगोपालन ने किया है. साहित्य सदा से ही समाज व राष्ट्र का पथ प्रदर्शक रहा है. हमारे कई साहित्यमनीषीयों ने अपने अनुभव व ज्ञान से कई ऐसी प्रेरक रचनाएं प्रस्तुत की है जिनका अध्ययन व अवलोकन हमें सत्य के मार्ग पर आगे बढने में सहायता पहुंचाता है. महापंडित राहुल सांस्क़त्यान ने तिब्बत व हिमालय की पहाडियों में घूम घूम कर विपूल साहित्य एकत्रित किया, वह भी पटना म्यूजियम में सुरक्षित है. उनके द्वारा रचित मध्य एशिया का इतिहास का भी प्रकाशन बिहार राष्ट्रभाषा परि षद द्वारा किया गया है. 1956 में इस पुस्तक को साहित्य अकादमी पुरस्कार भी मिला है. आज इतने महत्वपूर्ण ग्रंथों के प्रकाशन करने वाले संस्थान की हालात कैसी है, इसे देखकर हिंदीसेवी व प्रेमियों की आंख भर आ सकती है.नौकरशाही व राजनीति की छाया से यह अबतक मुक्त नहीं हो पायी है. तीन वर्षो से इस संस्थान द्वारा पुरस्कार वितरण साहित्यकारों के बीच नहीं किया गया है. साथ ही, इसके ज्यादातर पुरस्कार हमेशा विवादों के केंद्र में रहे है. मानव संसाधन विकास वि भाग बिहार सरकार को इसकी कोई चिंता नहीं. इस संस्थान को महापंडित गोपीनाथ कविराज जी की कई क़तियों के प्रकाशन का गौरव भी हासिल है. आज जो हिंदी हम प्रयोग में लाते है उसमें प्रस्तुत प्रथम गद्य रचना पं सदल मिश्र द्वारा रचित नासिकेतोपाख्यान के प्रकाशन का भी गौरव इस संस्थान को है. इस रचना की मूल प्रति आज भी इंपीरियल लाइब्रेरी लंदन में अंग्रेजों द्वारा सुरक्षित रखी गयी है. प्रसिद्व आलोचक आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने भी इसे आधुनिक हिंदी के करीब होने वाली पहली रचना माना है. जब विकास प्रिय सरकारों का ध्यान अपने समाज के साहित्य संस्क़ति की सुरक्षा की ओर नहीं जाता है तो यह जिम्मेवारी समाज को स्वयं आगे बढकर उठानी चाहिये. आखिर कब तक सरकार को दोष देकर हम बचने का प्रयास करते रहेंगे. साहित्य के पहरूओं को अपने अपने प्रदेशों के हिंदी सेवी संस्थानों की भी खोज खबर लेनी चाहिये.
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