Saturday, November 8, 2008

ब्‍लॉग लेखन क्‍या मीडिया के गटर की गंगा है

मेरी नजर अचानक एक ऐसे लेख पर पडी जिसमें ब्‍लॉग को मीडिया की गटर गंगा का हिस्‍सा बताया गया है. ऐसे में प्रश्‍न यह उठता है कि क्‍या ब्‍लॉग लेखन सचमुच इतना गंभीर नही है, इसके पाठक इसके बारे में क्‍या राय रखते है, इसकी समझ अब तक नहीं बन पा रही है. दूसरे अर्थो में यही समझा जा रहा है कि ब्‍लॉग सिर्फ मन की भडास मात्र है. मेरी राय में ऐसा नहीं है. खासकर, जब कोई पत्रकारिता जगत का व्‍यक्ति ब्‍लॉगिंग से जुडता है तो निसंदेह मेन स्‍ट्रीम में छुट जाने वाली बातों को रखने का प्रयास करता है. ये छूट गयी बातें मीडिया की गटर से निकली नहीं होती न ही गटर में फेंके जाने योग्‍य ही होती है. यह समझने वालों का भ्रम हो सकता है. साहित्‍य व पत्रकारिता के मेन स्‍ट्रीम में भी ऐसी बातें पायी जाती है, जो न सिर्फ गटर में फेंकी जाने वाली होती है बल्कि लगता है कि गटर से ही निकली हुई है. पाठक उसे वैसे ही ग्रहण करते है जिसके योग्‍य वो रचना होती है या उसकी अधिकारी होती है. कई ऐसे ब्‍लॉग है जो कई नई व रोचक जानकारी देते है. हमारा ज्ञानवर्धन करते है, कई ब्‍लॉग तो अपने आप में वि शद जानकारी तक उपलब्‍ध कराते है. जहां तक पत्रकारों के द्वारा अपने मन की खटास को इसमें टांके जाने की बात है, यह पत्रकार की अपनी अभिरुचि या क्षमता पर नि र्भर करता है कि वो अपने मन के वि ष, जहर को किस प्रकार औरों के लिए अम़त बना पाता है. हलाहल पीने वाले ही यह समझ सकते है कि अंम़त की जरूरत किसी कदर लोगों को होती है. जो अच्‍छा पढना, लि खना व समझना चाहते है, उन्‍हें ब्‍लॉग लेखन निश्चित रुप से अपनी ओर खींचता है, यह चालू भाषा में कहे तो बाथरूम सिंगर को गाने का एक बेहतर मौका फराहम करता है. यह समझने की बात है कि आप उस संगीत को कैसे लेते है. आपकी मौलिक प्रति भा का कैसे विकास होता है. कैसे आप अपनी जगह बना पाते है. पत्रकारिता के मेन स्‍ट्रीम में या सक्रिय लेखन के क्षेत्र में, कला साहित्‍य से इतर प्रत्‍येक कार्य में यही जददोजहद कार्य करती है. यही किसी को महान तो किसी को शैतान बनाता है.

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