Saturday, November 1, 2008

हिंदी वालों की आंखों का पानी गायब

आज हिंदी प्रदेश के हिंदी सेवियों के आंखों का पानी गायब हो गया है. यह सब लि खते हुए ह़दय को बहुत कष्‍ट हो रहा है जो आज मैने अपने आंखों देखी है. आज दोपहर में पटना में साहित्‍य के नामचीन आलोचक व साहित्‍यकार डा नामवर सिंह द्वारा बिहार के तेजतर्रार मंत्री के प्राइवेट से‍केट्री अशोक कुमार सिन्‍हा लि खित पिता नामक पुस्‍तक का लोकापर्ण किया गया. इसमें साहित्‍य अकादमी पुरस्‍कार प्राप्‍त कवि अरुण कमल सहित कई ख्‍यात स्‍थानीय साहित्‍यकार व आलोचक शामिल थे. डा नामवर सिंह ने अपने संबोधन में स्‍पष्‍ट भी किया कि वे पूर्व से अशोक जी को नही जानते, आलोचक नंद कि शोर नवल जी के द्वारा जानकारी मिलने पर मैने इन्‍हें जाना. इस समारोह में बिहार के पांच से सात प्रमुख एमएलसी, वि धायक भी उपस्थित थे. पुरी गहमागहमी के साथ कार्यक्रम चला. मैं उस पर नही जाना चाहता कि किसने क्‍या कहा और बातों ही बातों में कटाक्ष के कितने दौर चले. लेकिन जो मूल बात है कि इसी समारोह में ख्‍यात कथाकार मधुकर सिंह भी उपस्थित हुए. हाल ही में उन्‍हें पक्षाघात की शिकायत हो गयी है. साहित्‍य प्रेम व कुछ मजबूरी और उम्‍मीदों के साथ वे समारोह में अपने पोते के साथ पहुंचे. उनके हाथों में मुख्‍यमंत्री व मंत्री के नाम पत्र था. उनकी इच्‍छा थी कि शायद उसपर कुछ लोग अपने हस्‍ताक्षर कर दें ताकि सरकार के पास भेजा जाये तो कुछ आर्थिक सहायता मिले ताकि रोग से लड सके,थोडी सी जीवन मिल जाये, कुछ और साहित्‍य को दे सके. लेकिन हाय, रे हिंदी के सुधी श्रोता व दर्शक सब के सब उस भीड में शामिल थे जिनके लिए नामवर के दर्शन मात्र से ही पूर्व कर्मो का पाप मिटने का भरोसा था. किसी ने भी मधुकर सिंह की ओर ध्‍यान नही दिया. धीरे धीरे सीढियां उतर कर वे अपनी राह चले गये.उनके कापतें हाथों से छडी कब छुट जायेगी यह किसी ने नही महसूस की. हिंदी प्रेमियों की यह ह़दयहीनता समझ से परे है. हिंदी वालों की आंखों में अब पानी सिर्फ तारीफ व तालियों के साथ प्रशंसा के सूनने के लिए ही रह गया प्रतीत होता है. मैं ये नहीं कहता कि समारोह न हो, लेकिन सिर्फ कुडा कर्कट के लिए नामचीन लोग सामने आ जाये और जो बेहतर ल‍ि खे जा रहे हो उन्‍हें प्रशंसा के शब्‍द तो छोडिये उन्‍हें कोई पूछने वाला न हो उधर आलोचक अपनी भ़कुटी ताने रहे यह सब हिंदी में ही देखने को मिलती है.

3 comments:

नेपाल हिन्दी सहित्य परिषद said...

हिम्मत रखें। हिन्दी को आगे बढाने के लिए एक दुसरे का सहयोग करते हुए चलना है।

shivraj gujar said...

sadhuwaad kauslendra ji. aapka dhyan to madhukarji par gaya. khushi huyee aapne ise blog par dala. saath main yah bhi batate ki isake baad aapne unke liye kya kiya yah bhi batate to bahut achha lagta. bura mat maniyega lekin kya aapne kisi ko rok kar unki baat samjhane ki koshish ki. unke dard ko mahsoos karwane ki kawayad ki. agar kee to aapko naman. ek lekhak ke liye aapne kuchh kiya.
is sab ke bavjood aap ko sadhuwagd ki aapne samsya ko sabke samne to rakha. is blog ko padne ke baad sayad koi unki madad ko aage aaye.

Unknown said...

प्रिय मिश्र जी, मुझे आश्चर्य है कि आपको यह सब देखकर अचम्भा क्यों हुआ. अशोक कुमार सिन्हा कौन हैं, क्या लिखते हैं , नामवर सिंह ही नहीं हिन्दी का कोई लेखक भी नहीं जानता. रह गई बात लोकार्पण की. नामवर सिंह नन्द किशोर नवल और अरुण कमल की बात कैसे ताल सकते हैं.एक दूसरे की प्रशंसा करके ही तो ये लोग चर्चित हुए हैं. कथाकार मधुकर सिंह की कोई कृति मैं ने नहीं पढ़ी है. बहरहाल वे वामपंथी निश्चित रूप से नहीं होंगे. फिर उस सभा में उनके प्रति सहानुभूति क्यों होती. शेष बातें श्री शिवराज गूजर ने लिख ही दी हैं.