Saturday, November 29, 2008
वह पल जो ठहर सा गया...... कब रुकेंगे राजनेता
मुंबई में हुई आतंकवादी घटना को देख व सुनकर पूरा देश स्तब्ध रह गया।तीन दिनों तक राष्ट्र की धमनी में दौडता रक्त ठहर सा गया,एक एक पल आत्मचिंतन व चुनौतियों के प्रति अपनी जिम्मेवारी का एहसास कराता प्रतीत हुआ। क्या राजनेता, क्या अभिनेता,व्यवसायी,चिंतक,आम नागरिक सभी यह सोचने को बाध्य हो गये कि हमारे राजनेता आखिर कौन से कार्य में व्यस्त है जो उन्हें देश की आंतरिक सुरक्षा के प्रति लापरवाह बनाये हुए है. वैदेशिक नीति के उपर टीका टिप्पणी लगातार की जाती रही है किंतू क्या हम सचमुच बाहय आक्रमण को झेलने के लिए सामर्थ्यवान है।आंतरिक सुरक्षा की बदहाल स्थिति को लेकर क्या ठोस रणनीति बनायी जा सकती है,इस पर कभी विचार किया गया है भी या नही।थोडी देर के लिए अपने नेत़त्वकर्ताओं के प्रति अपने मन को शिथिल भी कर ले तो क्या देश का प्रत्येक नागरिक इन आतंकवादी घटनाओं से मुकाबले के लिए मानसिक रुप से तैयार है. यह चिंता लगातार व्यक्त की जा रही है कि मुंबई में तीन दिनों तक आतंकवादियों द्वारा दहशत का महौल बनाये रखने के पीछे लंबी व ठोस रणनीति अपनायी गयी होगी। तो क्या हमारे लिए यह जानना जरूरी नही कि ऐसे मौकों पर हमें किस प्रकार प्रतिक्रिया देनी है। आक्रमण हमारी नीति नही हो सकती लेकिन क्या जो आक्रमण करें उसे चिन्हित करते हुए उस पर प्रत्याक्रमण करना हमारी नीति नही हो सकती। जो कायर कौमे होती है,वही इससे इंकार कर सकती है। भारतीय रक्त में इस प्रकार की कायरता का कोई स्थान नहीं है।हमें वैसे देशों को जो आतंकवाद या आतंकवादी गतिविधियों को प्रश्रय दे रहे है खासकर, हमारे पडोसी मुल्क उनको स्पष्ट रुप से यह एहसास दिलाया जाना जरूरी है कि वे संभल जायें अन्यथा परिण्ााम के लिए तैयार रहें। भारतीय सीमा में पहली बार किसी आतंकवादी गतिविधि के लिए सेना के अधिकारी पर लगातार किये जा रहे आरोप प्रत्यारोप, एक प्रांत के लोगों को दूसरे प्रांत में अपमानित किया जाना,आतंकवादी गतिविधियों के लिए चिन्हित किये जा रहे लोगों के साथ नरमी का रुख हमें लगातार कमजोर बनाता जा रहा है। क्या सिर्फ वोट व सत्ता की खातिर एक अरब लोगों का यह मुल्क इतना कमजोर हो सकता है। राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्वकाल में श्रीलंका में जितनी जल्दी सेना को भेज कर सफलता पायी गयी थी,या मालदीव में हुए तख्त पलट को जिस कदर त्वरित गति से सुलझाया गया था,क्या वह आज 08 आते आते इतिहास के पन्नों में गुम हो गया। देश के खुफिया संगठन को क्यो कमजोर बनाया जा रहा है,उन्हें स्वतंत्रता देकर क्यो नही उनकी रिपोर्टो पर आक्रमक रुख अपनाया जाता है. राज्यों की अपनी खुफिया विभागे है जो लुंज पूंज स्थिति में है. उन्हें आधारभूत सुविधाएं दी जानी चाहिये या नहीं इस पर क्यो नही महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते. मुंबई पुलिस की स्कॉटलॉड यार्ड से तुलना की जाती है,वह एक राहुल राज की हत्या करने में स्वयं को जाबांज घोषित करती है लेकिन मौका देश के दुश्मनों से भिडने का हो तो तीसरी पंक्ति में नजर आती है। मुंबई के राजनेता जो मराठी गैर मराठी के नाम की कुछ दिनों पूर्व तक माला जप रहे थे,उन्हें सांप सूंघ गया है। हिंदू मुस्लिम व अन्य कौमों में नफरत की आग उगलने वाले,फतवा देने वाले तथाकथित संप्रदायिकता विरोध के नाम पर अपना उल्लू सीधा करने वाले आज किस दूनिया में है यह किसी को पता तक नही है. क्या देश सिर्फ उनका है जो हाथों में हथियार लेकर देश के नाम पर शहीद होने के लिए तैयार है, या उनका भी है जो उनके परिवार के साथ शांति से समय गुजारना पसंद करते है. क्या देश के नीति नियंताओं को यह नही सूझता कि इस देश में शांति व सदभाव के बिना किसी प्रकार का विकास नामुमकिन है।वोट व सत्ता के पीछे पागल बने लोगों को अपने हाथों को मजबूत बनाने के लिए दूसरे विकसित देशों से उद्वाहरण लेना उचित नही प्रतीत होता. हम संविधान का निर्माण उधार लेकर दूसरे मुल्कों से कर सकते है,उसपर इतरा सकते है कि देखों दूनिया के बेहतरीन प्रणाली को हमने अपनाया है. तो क्या देश के दूश्मनों से निबटने के तरीके से नही सीख सकते,शांति व सदभाव से रहना नही सीख सकते, विज्ञान व तकनीक की प्रगति के लिए किये जाने वाले उपाय नही सीख सकते. आखिर कबतक हम अपने कांधों पर लाशों को ढोने के लिए मजबूर होंगे. मुंबई की घटना पर टिप्पणी करते हुए अमेरिकी रक्षा विशेषज्ञ ने क्या खूब कहा कि वर्तमान भारतीय ग़हमंत्री बेहद कमजोर है। उनसे ऐसी घटनाओं से निपटने को लेकर या पूर्व की तैयारी को लेकर बेहतर उम्मीद नही की जा सकती। यूपीए हो या एनडीए दोनों धडों को कम से कम देश हित में एक सुस्पष्ट नीति आतंकवाद को लेकर विकसित करनी चाहिये ताकि अव्वल तो ऐसे हालात न पैदा हो या संकट आए भी तो उससे कडाई से निपटा जा सके। गोली का जबाब गोली से देने की घोषणा करने वाले क्षेत्रीय राजनेताओं को भी सर्तक होकर अपने बयान देने चाहिये। प्रांत कमजोर होता है तो देश कमजोर होता है, लोगों को नागरिक अधिकारों के साथ कर्तव्यों की भी जानकारी देनी चाहिये। हमें छोटी छोटी बातों से उपर उठना सीखना होगा। कभी कभी तो अपने देश के लोगों के विचारभिन्नता को देखकर लगता है कि सचमूच यह कुपमंडूकता से उबरने में अभी तक नाकाम साबित होता रहा है. कोई तो हो जिसे राष्ट्रीय व जातीय श्रेष्ठता का अभिमान हो,सिर्फ मुठठी भर लोगों के द्वारा राष्ट्रगान गाये जाते रहे, या सिर्फ स्वतंत्रता अथवा गणतंत्रता दिवस के अवसर पर औपचारिकता निबाहे जाते रहे तो इन हालातों से निबटना मुश्किल है. अपने देश के स्कूल व कॉलेजों में नौजवानों को सैन्य प्रशिक्षण देने के लिए नेशनल कैडेट कोर एनसीसी की स्थापना की गयी है। यह प्रशिक्षण सुविधा देने मात्र का संगठन नहीं है बल्कि अपने देश को करीब से जानने व महसूस करने वाला संगठन है। आज राहुल गांधी को घूम घूमकर अपने देश को समझना पड रहा है काश, वे इसके माध्यम से प्रशिक्षित होते तो संभवतया उन्हें सैन्य बारिकियों के साथ,अपने देश की विविधता में छिपी एकता के भी दर्शन हो गये होते। कोई आवश्यक नही कि एनसीसी प्रशिक्षित सैन्य सेवा में ही जाये, देश के किसी भी भाग में, किसी भी कार्य में लगे युवाओं के जीवन में, व्यक्तित्व में यह युगांतकारी परिवर्तन ला देता है। सेना,पुलिस या वर्दी खौफ व आतंक पैदा नही करती बल्कि देशद्रोहियों, समाजविरोधियों का सर कुचलने में सहायक सिद्व होते हुए प्रतीत होती है.यह अच्छे राजनेता भी हमें दे सकती है.
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