Thursday, November 13, 2008
सोने की चिडिया स्वीस बैंक में कैद
भारत को कभी सोने की चिडियां कहा जाता था, यहां दूध की नदियां बहती थी,यह मात्र कपोल कल्पना भर नही थी। सचमुच उस समय भारत धन धान्य से भरपुर था।यहां से मसाले,सुती वस्त्र,स्वर्ण आभूषण,आयुर्वेदिक दवा इत्यादि कई अन्य जरूरत की चीजों का निर्यात किया जाता था। भारतीय व्यापारियों को बडे स्वागत के साथ विदेशों में आमंत्रित किया जाता था। आज का भारत इसके ठीक उलट है। आज भारतीय अर्थव्यवस्थ्ा विकास के घोडे पर सवार होने के बावजूद गरीबी का अभि शाप ढोने को अभिसप्त है। सोने की चिडियां आज स्वीस बैंक में कैद है। प्राप्त जानकारी के अनुसार स्वीस बैंकों में जमा राशि के पांच बडे स्रोतों में शामिल भारत के 1,456 अरब डॉलर,रूस के 470 अरब डॉलर,यूके के 390 अरब डॉलर,उक्रेन के 100 अरब डॉलर तथा चीन के 96 अरब डॉलर की मुद्रा स्वीस बैंक में कैद है। क्या ऐसा हमारे देश के नियति नियंताओं के सहयोग के बिना हो सकता है। क्या इसके लिए हमारे देश की आर्थिक नीतियां जिम्मेवार नही है। हद तो यह है कि स्वीस बैंकों में जमा राशि भारत के कुल राष्ट्रीय आय से डेढ गुना ज्यादा है तो भारत के कुल विदेशी कर्जो का 13 गुना है। इस राशि को वापस लाकर देश के 45 करोड गरीबों में बांट दिया जाये तो सब को कम से कम एक लाख रुपये मिलेगा।ऐसा नहीं कि इसमें सिर्फ बेईमान राजनेताओं के धन जमा है, इसमें उद्योगपतियों, फिल्म कलाकार, क्रिकेट खिलाडियों के साथ कई लोगों की राशि भी शामिल है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इन बैंकों की खासियत यह है कि इसमें जमा राशि पर कोई टैक्स नही लगता, न ही जमाकर्ताओं के नाम व नंबर सार्वजनिक किये जाते है। अब आप ही विचार करें कि ऐसे बैंकों के कर्ताधर्ताओं को क्या कहा जाए देश के सुधारक, विकास की ओर ले जाने वाले पुरोधा, देश के आईकॉन, या गरीबों का रक्तचूषक. आज आप राजनीतिक उठापटक के बीच जो भी घात प्रतिघात कर लें, मुलायम कहें की सत्ता में आने पर मायावती की मूर्ति उखाड देगे, तो अगला कहेगा कि मुसलमानों को जन्नत नसीब करा देंगे,गरीबों को लॉलीपाप बांटेंगे, लेकिन सच यही होगा कि ये सब बरगलाने वाली बातें है. इनका न तो गरीबों के बच्चों के स्वास्थ्य,शिक्षा, उनके जीवन स्तर में सुधार से कोई दूर दूर तक संबंध है, न ही उनके माता पिता की आय में सुधार, उनका देश के विकास में सक्रिय भागदारी निभाने के अवसर प्रदान किये जाने से है. ये जो मिडिया हाउस है,भले ही गला फाड कर चिल्लाये कि ये हो रहा है, वो हो रहा है लेकिन सच्चाई इससे कोसों दूर है. हमारे जनप्रतिनिधियों के ड्राइंगरुम से निकलकर कोई बात आगे नही जाती.
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1 comment:
aapne kya khoob gambheer baten kahi hain. vastav me mudde aise hi uthaye jane chahiyen jinka sambandh desh ke bahusankhyak gareeb gurbaon se ho. asal me patrakarita ya fir blogging sabka maqsad bahusankhyak jan ke prati hi zyada hona chahiye. lekin aaj ke vyavasayik daur me ye sari baten kafi peeche choot gai hain. aapko iske liye badhai.
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