Saturday, July 26, 2008

रो रही वैशाली.....

वैशाली जार जार रो रही है. उसका रोना न तो किसी की समझ में आ रहा है न वह किसी को कुछ स्‍वयं समझाना चाहती है.उसकी पीडा बहुत ही विकट है. उसे न किसी के प्रति क्रोध है न किसी से अब उम्‍मीद ही बची है. कदाचित, घोर निराशा की घडी उसके जीवन में इतनी पूर्व में कभी नही हुई थी. उसने राजतंत्र को धीरे धीरे समाप्‍त होते देखा था, मगध साम्राज्‍य के उदभव व विकास के साथ उसे नेस्‍तानबुद होते भी देखा. मध्‍यकाल, मुगलकाल फिर उसके बाद आयी अंग्रेजों की गुलामी का दौर जब वैशाली घोर निराशा के दौर से गुजर रही थी. वैशाली की पीडा सिर्फ गुलामी की पीडा नहीं थी, उसे अपनो द्वारा जमींदारो, सामंतों द्वारा चलाये जा रहे समांतर व्‍यवस्‍था की पीडा भी कष्‍ट पहुंचा रही थी. उसे अपने संतानों पर भरोसा था. उसे मालूम था कि एक दिन ऐसा आयेगा,जब फिजां में गणतंत्र का परचम फिर लहरायेगा. गणतंत्र जिसमें न कोई छोटा होगा न बडा, न कोई शासक होगा न शासित, न कोई शोषक होगा न कोई शोषण पीडित. उसकी ऐसी मान्‍यता इस लिए थी कि संपूर्ण भू मंडल पर पहली बार गणतंत्र का विकास उसी के आंचल की छांव में हुआ था. आज वह जार जार रोने को मजबुर है. उसे अपनी संतानों पर से विश्‍वास उठ चुका है. उसे पता नहीं कि फिर कब गणतंत्र अपने मूल रूप में सामने आयेगा. ऐसा चारो ओर अंधेरा दीख रहा है. जिस राष्‍ट्र को गणतंत्र की शुरूआत करने का गर्व था, आज उसी राष्‍ट्र की सर्वोच्‍च लोकतांत्रिक इकाई संसद में मां भारती के बेटों ने, वैशाली के बेटों ने उसे लज्जित कर दिया है. सब एक दूसरे पर लांक्षन लगा रहे है. यह वक्‍त विश्‍लेषण करने का नहीं कि किसने क्‍या किया, यह सोचने का है कि आगे हम क्‍या करें कि पुन ऐसा दिन देखने को नहीं मिले. हमारे गणतंत्र को दागदार बनाने वाले धोखेबाज,गददार व राष्‍ट्रद्रोही तत्‍व नकाब ओढकर जनता को धोखा न दे सके,ऐसा क्‍या करें. वैशाली के वंशज, भरत के वंशज जो शेरों के दांत गिना करते थे, अपने प्राणों की आहुति देकर भी अपनी मात़भूमि की लाज बचाते थे, आज उन्‍हें क्‍या हो गया है. 'जननी जन्‍मभूमिश्‍च स्‍वर्गादपि गरियसी, का उदघोष करने वाले आर्यावर्त की भूमि को नपूंसकों ने ऐसी स्थिति में ला दिया है जहां राष्‍ट्रभक्‍तों की हुतात्‍माएं चित्‍कार कर रही है. यह गजब का संयोग है कि भारतीय युद्व इतिहास के महानायक जनरल मानिक शॉ ने इस घटना के पूर्व अपनी आंखे बंद कर ली, सोचिए उनपर क्‍या गुजरती जब वे ऐसा करते अपने जनप्रतिनिधियों को देखते. मानव तस्‍करी, मानव की खरीद फरोख्‍त को मानवाधिकार का हनन बताने वाले जब जनप्रतिनिधियों की खरीद फरोख्‍त में जुट जाये तो स्थिति सोचनीय हो जाती है. धन्‍य है ऐसे राजनेता जिन्‍हें वैशाली के आंसू नहीं बल्‍कि सत्‍ता की कुर्सी द‍ि खाई पडती है.

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

वेशाली को समझाये कोन कि यह कपूत पेदा करे गी तो उस का फ़ल भी तो उस समेत पुरे परिवार को भुगतना पडेगा,ओर नाक कटेगी खानदान की.
धन्यवाद, आप का लेख बहुत ही भावुक ओर सच्चई के करीब हे

Anonymous said...

priye sathi,aapki subhkmana ke liye aabhri hun.Sahi kaha aapne jiwan me sukh-dukh to chalte hi rahte hain.Lekin yah bhi sahi hai ki ab meri umar bhi bimar rahne ki ho gayi hai.Ab to bas aap jaise sahityik mitron se samvad banana acha lagta hai.Khali samay me pita ji ki kitaben padta hun.
kya aapne madhisala ka recard meri awaj me suna hai? Chahta hun ki us par ek 45 mint ka vidio banaun...kaisa rahega, kya sahityik log use pasnd karenge? aapni ekdam imandar salah denge.
aapki sbhi nayi post padi..acha likh rahe hain.