Monday, July 21, 2008
गण विहीन तंत्र
आज पुरे देश में तंत्र की ही चलती है. तंत्र का जीवन के प्रत्येक पहलू पर अधिकार है. यह अधिकार भी अनजाने में उसे नहीं मिला है, भारतीय संवि धान ने उसे प्रदान किया है. तंत्र अपनी मस्त चाल से काम करता है,गण बेहाल रहे इससे उसे कोई मतलब नहीं. चाहे किसान आत्महत्याएं करे, रोटी के लिए जंग मची हो, गरीबी की रेखा दिनो दिन बढती जा रही हो, मंहगाई कमर तोडती रहे, तंत्र अपनी धुन में लगा रहता है. तंत्र द्वारा गण को शेयर मार्केट व सेंसेक्स की गिरती उतरती तस्वीर दि खाई जाती है, उसे बताया जाता है इंडिया शायनिंग. महानगरों की चकाचौंध, देश की बदलती तस्वीर, कैमरे की चमक के बीच आम नागरिक की देशभक्ति ताकि वह भ्रम में न रहे. रोम में ऐसा ही हो रहा था जब नीरो बांसुरी बजा रहा था और लोगो से पूछता था कि रोटी नहीं मिल रही है तो वे ब्रेड क्यो नहीं खाते. 15 अगस्त हो या 26 जनवरी राष्ट्रीय पर्व भी गण के लिए बेमतलब होते जा रहे है. हिंदी पत्रकारिता हो या क्रांतिवीरों की देशभक्ति आज उसके कोई मायने नहीं रह गये है. भारतीय संवि धान के निर्माताओं ने ऐसा सोचा भी नहीं होगा कि जिन गणो के लिए तंत्र का निर्माण कर रहे है वही एक दिन भस्मासुर की तरह गण को तबाह करने पर तुल जायेगा. आज महंगाई की मार बढती है तो वित्त मंत्री मुंबई की ओर भागते है. प्रधानमंत्री की कुर्सी पर खतरा मंडराने लगता है, केंद्र की सरकार गिरने की स्थिति में आ जाती है तो कारपोरेट घराने याद आने लगते है. एक एक जनप्रतिनिधि को रूपयों में तौला जाने लगता है, सजायाफता भी मेहमान नजर आने लगते है. क्या इन्हीं दिनों के लिए राष्ट्र निर्माताओं ने स्वयं की कुर्बानी दी थी. अपने वतन पर दिला जान नियोच्छावर कर दिया था. जिस बाजारवाद,उदारीकरण, ग्लोबलाइजेंशन के कारण शायनिंग इंडिया की तस्वीर बनाने को हम मजबूर हो गये है क्या उस पर नकेल कसना अब मुश्किल हो गया है. हमारे मस्तिष्क इतने कुंद हो गये है कि हमें राह नही सूझ रही है. गण को एक बार फिर ठहर कर सोंचना होगा. तंत्र के भुलावे में नहीं पडकर देखना होगा कि कैसे अपनी बाजुओं को मजबूत कर हम अपनी मात़भूमि को दलाल, मक्कार व फरेबी चेहरों से बचाकर रख सकते है. सरकारे आती जाती रहेंगी, राष्ट्र को बचाना होगा.हमें अपनी तकदीर स्वयं गढनी होगी. तंत्र को अपने अनुसार कार्य करने योग्य बनाना होगा.
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2 comments:
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