पटना - हिंदी पत्रकारिता में इन दिनों एक नयी ट्रेंड उभर कर सामने आयी है, वे या तो मीडिया के कोई साधन हो, प्रिंट अथवा इलेक्ट्रानिक या इंटरनेट पत्रकारिता, हर जगह पाठकों की भूख बढ गयी है. इसे पुरा करने के लिए इन दिनों राजनीति, धर्म व सेक्स को आधार बनाया जाने लगा है. हिंदी पाठकों को भी इन दिनों पत्रकारिता के भटकाव का सामना करना पड रहा है. आखिर इसका क्या समाधान हो सकता है. कई ऐसे मुददे इससे उभर कर सामने आते है. मूल रूप से हमें इस पर विचार करने के पूर्व उन सभी तथ्यों पर गौर करना होगा जो इसके लिए उत्तरदायी है. जो सबसे प्रमुख बिंदू हमारी नजरों में उभर कर सामने आ रहा है वह है राष्ट्रीयता की भावना का अभाव. देश को स्वतंत्रता प्राप्ति के 60 वर्ष पुरे होने को है. दो तीन युद्वों को सामने देख चुके इस देश में आज भी राष्ट्रीयता की भावना सिर्फ 15 अगस्त व 26 जनवरी को स्कूलों में बच्चों के बीच देखी जा रही है. क्या कारण है कि आम जनता उस दिन मिली छुटटी को इंजावाय करने में जुट जाती है. क्या इसी के लिए आजादी की कल्पना की गयी थी. हिंदी अखबार व चैनल भी राष्ट्रीय त्योहारों को ग्लैमराईज कर प्रस्तुत करने में जुट जाते है. इस देश का दुर्भाग्य यह है कि शायद ही किसी के घर में देश का एक नक्शा भी उपलब्ध हो, अथवा है भी तो उसे प्रदर्शित किया गया हो, घर में उचित स्थान पर टंगा हो.जबकि जर्मनी, जापान सहित कई मुल्कों में ऐसा शायद ही देखने को मिलता है. स्वयं जिस अमेरिका के पिछलग्गू बनने में हमें कोई परेशानी नहीं होती उस देश में भी नागरिकों का देश प्रेम देखते बनता है. वहां की मीडिया राष्ट्रीय हितों के मुददे पर किसी को भी नहीं बक्शती है चाहे वह राष्ट्रपति हो या व्यावसायी, वैज्ञानिक हो या कोई अन्य. दूसरा सबसे बडा प्रश्न यह उठता है कि राजनीति को आखिर किस दशा में पत्रकारिता देखना चाहता है यह उसे स्वयं पता नहीं है. यहां अपराधी को महिमामंडित किया जाता है वही उसके सांसद व जनप्रतिनिधि बनने पर हिंदी पत्रकारिता में खिचाई करते हुए नैतिकता व शुचिता का बखान किया जाता है. जैसे अपराधी का जन प्रतिनिधि बनने में सिर्फ उसकी ही भूमिका हो, जनता,मीडिया, संवैधानिक संस्थाओं व सरकारी उपक्रमों की भूमिका गौण हो. इसकी पडताल नहीं की जाती कि कैसे कोई अपना मतदान नही कर पाता, क्यों मतदान को अनिवार्य घोषित नहीं किया जाता, मतदान नहीं करना दंडनीय क्यों नहीं बनाया जाता. आखिर क्यों मात्र 15 से 30 फीसदी वोट पाने वाला दल देश को दल दल में डाल देता है. मंहगाई, अपराध, आतंकवाद, भष्ट्राचार को पनपने में क्यो सत्तारूढ दल सार्थक भूमिका में स्वयं को खडा कर देता है.
धर्म को भी हिंदी पत्रकारिता जरूरत से ज्यादा बिकने वाली चीज मान बैठा है. किसी धर्म गुरू के व्याख्यान व आख्यान को जनता तक पहुंचाना और बात है किंतू सुबह से शाम तक योग, प्रवचन व धर्म चर्चा के नाम पर लोगों के दिमाग पर इस कदर बातों को फेट दिया जा रहा है जैसे धर्म व धार्मिक प्रवचन सुनने के बाद आदमी संत हो जाता है. जीवन के प्रति उसकी सोच बदल जाती है. वह सत्यकर्म की प्रेरित हो जाता है. हद तो तब हो जाती है जब तंत्र के नाम पर देर रात जहां ढेर सारी भूत प्रेतों की कथाएं सुनायी जाती है उसे लोगों के सामने परोसा जाने लगता है. जैसे हम कहीं श्वास ले रहे हो तो कोई प्रेत उसमें आकर बाधा न उत्पन्न कर दे. और तो और मसानी बाबाओं की नित्यलीला को दखिाकर आखिर हिंदी चैनल क्या कहना चाहते है. हिंदी पत्र भी इसमें पीछे नहीं है. हर कोई इसे अपने तरीके से बेच रहा है. एक नया ट्रेंड उभर कर सामने आया है वह है ज्योतषि के नये नये प्रयोग. कोई टैरो कार्ड को लेकर चर्चा में मसगुल है तो कहीं लैपटाप पर लोगों की कुडली खंगाली जा रही है. पाठकों के हर प्रश्न का तुरंत जबाब हाजिर है. ऐसे चैनल यह भी बता रहे है कि आप कौन सा वस्त्र पहनें, कैसी रंग की गाडी पर चले, आफिस का रूख कैसा हो, आप हस्ताक्षर कैसे करते है, आप कौन से दिन कौन सी वस्तु दान करें, कुत्ते को खिलायें. हिंदी क्षेत्र की मीडिया ने जीवन के हर पहलू पर नियंत्रण स्थापित करने में जुट गयी है. वह भी तब जब अखबार हो या चैनल इसकी पकड आज भी देश की 45 फीसदी निरक्षर जनता के समझ व पकड से बाहर है. उन्हें उभरते हुए बाजार के तौर पर मीडिया हाउस देख रहा है.
सबसे अहम मीडिया के बाजार का हथियार बन गया है सेक्स. इस पर कुछ भी चर्चा करना मतलब कीचड में कंकड मारना हो गया है. जितना इसे भारतीय जीवनचर्या में महत्व दिया गया था उससे भी आगे बढ कर संपूर्ण ज्ञान बांटने में हिंदी मीडिया लगा हुआ है. नारी के प्रत्येक अंग को विभिन्न कोणों से जांचने व परखने की जिम्मेवारी मीडिया ने अपने हाथों में ले ली है. हिंदी मीडिया के सशक्त साधन फिल्मों ने तो इसके नेत़त्व पर एकाधिकार किया रखा था लेकिन नये नये चैनलों ने उसे मात देने में कोई कसर नहीं छोड रखी है. कामसुत्र के रचयिता महर्षि वात्सायन आज जीवत होते तो उन्हें भी अपने अल्प ज्ञान को लेकर र्शर्र्र्मिनदगी उठानी पडती. बडे बडे पत्रकार उन्हें बढते यौनाचार के आंकडें पेश कर यह महसूस करने को बाध्य कर देते देखे आपकी पुस्तक से ज्यादा ज्ञान सदियों से जनता में है. ये और बात है कि अब इसका प्रयोग खुलमखुला हो रहा है. वर्तमान हिंदी साहित्यकारों की रचनाएं उन्हें बतलाती कि स्त्री विमर्श के माध्यम से आप जैसे विद्वानों की खिचाई कैसे की जा सकती है.
Monday, July 7, 2008
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
7 comments:
Ekdum Sahi..
sahi kaha
Priya kaushalendra ji
apki Tippani mili. Bahut Khushi hui. Apke lekhan se mujhe pahle hi laga tha ki ap ek gambheer aur sachet patrakar hain. Apki Tippani ne yah sabit bhi kar diya. Mujhe yah dekh kar achchha laga ki ap jaise log Hindi Blog se jude huye hain aur samaj ke prati itne chintit hain. Apka lekhan mujhe ashwast karta hai Hindi samaj abhi bhi vicharheen nahin hua hai. wah zinda hai aur us uunchai ki or nirantar agrasar ho raha hai, jiska sapna mere pitaji dekha karte the.
aap isi tarah aage badhte rahen, yahi kaamna hai.
aur ant men, aap mujhe shrddhey nahi kaha karen. Hum sabhi barabar hain.
pranam
A bachchan.
आपने बिल्कुल सही फरमाया है। िनश्चय ही आप अपने तरीके से समाज की बेहतरी के िलए पृृकािरता करते होंगे । मैं भी पत्रकािरता से जुडी हूं और धनबाद की रहने वाली हूं और इस समय जी टीवी में ट्रेिनंग में हू । आप जैसे सीिनयर लो्गों से मुझे भी कुछ सीखने को िमलेगा । आपके िलखे हर शब्द को घ्यान से पढ रही हू। आप बस िलखते रिहए । आपकी नये लेखन का बेसब्री से इंतजार रहेगा। आज ऑिफस में भी मैंने पत्रकािरता से संबिधत आपके लेंखों पर चर्चा की। आज इतना ही
रूिच पांडे,
वैचारिक सहयोग के लिए धन्यवाद
मेरे ब्लॉग को निरंतर ध्यानपूर्वक पढने व देखने के बाद कई लोगों ने अपना वैचारिक सहयोग प्रदान किया है. इसके लिए मैं उनसभी का ह़दय से आभारी हूं. साथ ही यह उम्मीद करता हूं कि यह क़पा द़ष्टि इस तुच्छ लेखक के प्रति बनी रहेगी. ब्लॉग लेखन के क्षेत्र में मैं बिल्कुल ही नया, व अनुभवहीन हूं. ब्लॉग को आपरेट करने में तकनीकी बारिकियों को समझने का प्रयास कर रहा हूं, कई बार अन्य रचनाकारों के अच्छे सुझाव व लेखों का प्रति उत्तर देने में असफल रहता हूं, इसके लिए अन्यथा न लेंगे.
aap jaise buijurg patrakaron ki vakai is desh ko zaroorat hai. badhai.
aap jaise buijurg patrakaron ki vakai is desh ko zaroorat hai. badhai.
Post a Comment