Tuesday, January 27, 2009
थोडी सी शर्म व आत्मालोचन
इस देश को कौन संचालित करेगा गणतंत्र या भीड़तंत्र या इन सब से इतर छिपे हुए चेहरों के बीच अपने असली चेहरों को भूल गये लोग. अगर आपका अंतःकरण अशुद है तो बाहरी आवरण बहुत दिनों तक किसी को उल्लू नही बना सकता. अजब सी सियासत है इस देश की जब आतंकी वारदात के खतरों से देश जूझ रहा हो,सीमा पार से गर्म हवाए आ रही हो, गणतंत्र दिवस के अवसर पर शहीदों को अशोक चक्र व अन्य सम्मान प्रदान किये जा रहे हो, नासिक के एक विद्यालय में गणतंत्र दिवस समारोह को तोड़ फोर कर बंद करा देना,महज इस लिए की भोजपुरी गीत की प्रस्तुति हो रही थी,बडे ही शर्म व शोक की बात है- कैसे किसी का दिल इस बात की गवाही देता हैं की जिस घर में हम रहे उसी घर में अपने हाथो से आग लगा दे । इस देश को ऐसे लोगो से निजात मिलनी चाहिए,जो किसी भी प्रकार की वैमनस्यता फैलाते हो । ६० वे गणतंत्र को करीब से जी भरकर देख लो, इसकी हड्डियों में भरपूर जवानी हैं, यह वही मुल्क हैं जहा ८० वर्ष के बाबु वीर कुवर सिंह ने अंग्रेजो के दांत खट्टे का दिए थे, १८५७ की क्रांति में एक बड़े भूखंड को विजित कर अपने प्राण त्यागे थे। अब हमें उन कमजोरियों की पहचान करनी चाहिए की कौन से तत्व हमें अन्दर व बाहर से खोखला बना रहा हैं। बंद करे यह भाषा, प्रान्त, मजहब और निर्ल्लाजता की बाते। देश की ६० फीसदी आबादी में शामिल युवा किसी भी देशद्रोही को बर्दाश्त कराने की हालत में नही हैं। यहाँ आपको तय करना होगा की आने वाली संतति को आप कैसा मुल्क सौपना चाहते हैं। क्या सुभाष ने इसीलिए अपना घर बार त्यागा था। गाँधी ने रामराज्य का सपना देखा था। बिस्मिल की कुर्बानी यु ही जाया हो जायेगी। विचारे, क्यों सच्चा देश भक्त मुस्लमान भी दहशत गर्दी के विरूद्ध जुबान खोलने में समर्थ नही पाता,क्यों किसी भी खास भाषा प्रान्त के नाम पर भीड़ तंत्र अँधा बन कर विवेक खो बैठती हैं, गणतंत्र किनारे खड़ा सिसकता रहता हैं। हम अपना अनुशासन कहा भंग करते हैं। कभी इस देश की गरीबी के आकडे इक्कठे किए जाते हैं, उन्हें गीत ,कला , अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बेचा जाता हैं, तो कभी कभी अनकर देखही लाल आपण फोरी कपार को प्रदर्शित किया जाता हैं ।हम अपने आप पर इस देश पर यहाँ की मिटटी पर कब गर्व करना सीखेंगे.
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