Saturday, January 3, 2009

नव वर्ष में अज्ञात भय से मुक्‍त हो

नव वर्ष का आगाज हो चुका है, बीते वर्ष की बिदाई व नये वर्ष के आगमन के बीच कई लोगों ने अपनी अपनी प्राथमिकताएं तय की होगी. बीते वर्ष की समाप्ति आतंकवाद के भीषण रुप को सामने लेकर आया. जबकि कई अच्‍छी बातें भी देखने को मिली थी. अच्‍छी बातों को याद करने से प्राय लोग कतराते है. खैर, आम मानसिकता की तरह ही हम भी उसी पर बातें करते है. प्राय देश के खास ओ आम लोगों के मन में पाकिस्‍तान की बातें आते ही,अपने देश में निवास करने वाले अल्‍पसंख्‍यकों को लेकर धारणाएं बनने बिगडने लगती है. हद तो यह है कि कई बार अल्‍पसंख्‍यकों के मन में ऐसा अज्ञात भय पैदा हो जाता है, मानों उनका भारतीय गणतंत्र से कोई वास्‍ता नही है. जाति व धर्म से उपर उठ कर सोचने व विचार करने का जज्‍बा अब भी अपनी शैश्‍वावस्‍था में ही है. वेद व कुरान की गुढ बातें न तो बहुसंख्‍यक समझते है, न अल्‍पसंख्‍यक. चूंकि अल्‍पसंख्‍यको में मुसलमान निशाने पर होते है, इसलिए पहले हम जान ले कि मुसलमान वस्‍तुत है कौन. मुसलमान, मुस्‍सलसल हो ईमान जिसका वही सच्‍चा मुसलमान है. जो अपने ईमान पर अडिग रहता हो. आप स्‍वयं देखें कि कितने ऐसे मुसलमान है जो अपने ईमान पर कायम रहते है. खासकर, अल्‍लाह( ईश्‍वर ) पर ईमान लाने वाला व्‍यक्ति कैसे बिना सिर पैर की सोच रख सकता है. दूसरा, वेद की ऋचाएं व कुरान की आयतों को गौर से पढे. कई बातें एक दूसरे को दुहराती प्रतीत होती है. वेद के अंतर्गत सूर्योपासना पर बल दिया गया है तो सूर ए जिन की चर्चा किस कदर उससे अभिन्‍न है यह भी देखें. खैर, गुढ रहस्‍यों की विवेचना यहां मेरा उदेश्‍य नही है. यह जो अज्ञात भ्‍ाय है उससे कैसे हम निकल सकते है, इस पर हमें विचार करना चाहिये. हमें इस पर विचार करना चाहिये कि जिस इस्‍लाम में ढुढ ढुढ कर बुराईयों की खोज की जाती है, उसी के मानने वाले पीर व फकीरों के दरबार में क्‍यों जाति और मजहब भूलकर सभी बंदे अपना सिर झूकाते है. क्‍यों वहां हर हदय भयरहित हो जाता है. क्षेत्रीयता, भाषाई संकीर्णता, धार्मिक कटटरता, आतंकवाद इत्‍यादि हमें थोडी देर के लिए भले ही डराते हो, इससे खबराना नहीं है. भारत भूमि पवित्र आत्‍माओं की निवास भूमि है. यही कारण है कि शक, हूण, कुषाण से लेकर इस्‍लाम व ईसाईयत ने भी यहां आकर अपना बसेरा बनाया है. आप और हम रहे न रहे यह मूल्‍क रहेगा. इसकी खुशबू दिनों दिन विश्‍व में बिखरती रहेगी, बशर्ते हम अपनी भावनाओं में पवित्रता, भाईचारगी, खुदा ईश्‍वर, गुरू, जिसे भी आप अपना पथ प्रदर्शक मानते हो उनमें आस्‍था बनायें रखे. प्राचीन भारत के अंश भाग चाहे गंधार अब अफगानिस्‍तान, बन जाये या गुरू नानक की जन्‍मभूमि ननकाना साहिब पाकिस्‍तान का अंश हो जाये, बुल्‍लेशाह के भजन हो या मीरा की भूमि उसकी गूंज बहरे को भी ईश्‍वर का ध्‍यान कराती रहेगी, आईए इस नये वर्ष में हम भयमुक्‍त होकर जीना सीखें. ऐसे किसी भी तत्‍व को प्रश्रय न दे जो देश की एकता व अखंडता को खतरे में डालने का प्रयास करता है. आर्यावर्त की इस भ‍ूमि पर भरत बचपन से ही शेर के मूंह में हाथ डालकर उसकी दांतें गिना करता है. अपनी संवेदनाओं को जाग्रूत करें, वतन पर कुर्बान होने का मौका विरले को ही प्राप्‍त होता है. अमर शहीदों की इस भूमि अशफाक, भगत सिंह, महात्‍मा गांधी, विवेकानंद की भूमि के कण कण में शक्ति विराजमान है.

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