Saturday, February 27, 2010
मिडिया पर सरकार व् कार्पोरेट जगत का नियंत्रण
मिडिया या पत्रकारिता आज सरकार व् कार्पोरेट जगत के शिकंजे में रहकर तड़प रही हैं। इस तड़प व् दमघोटू मौहाल से गुजरने वाला हर पत्रकार वाकिफ हैं। पत्रकारिता के नाम पर सिधांतो की बात करके व् बाजार के चलन को अपनाते हुए किसी प्रकार की उत्कृष्टता की बाते की जा सके इसकी उम्मीद करना व्यर्थ हैं। एक अवसर हमें मिलता हैं जिस पर ठरते हुए हमें विचार करने की जरुरत हैं, वह हैं अपने पेशे के साथ ईमानदारी बरते। होली के अवसर पर हमें यह संकल्प लेनी चाहिए की पब्लिक में बनी यह धारणा की पत्रकारिता लोक तंत्र का चौथा खम्बा हैं यह समाप्त न हो जाये। यह कोई संविधान प्रदात सुविधा नहीं हैं। यह जन आकांछा हैं। आज मुख्यमंत्री नितीश कुमार भले ही बिहार व् देश दुनिया में बेहद लोकप्रिय हैं, अपने शासन व् सोच के कारण पुरस्कृत किये जा रहे हो, लेकिन उन्हें स्पष्ट पता हैं कि क्यों दिल्ली उनकी आवाज को नहीं सुनती। लालू का भी अपना सोचना हैं दिल्ली सत्ता कि ताकत को पहचानती हैं, फिर तो हार्वर्ड व् टेक्सास विश्वविद्यालय से कैसे मनेजमेंट गुरु कि उपाधि ली जा सकती हैंहमारे राजनेता जनभावनाओ को समझते नहीं या समझने कि जरुरत नहीं समझते हैं। इस नासमझी से फैलने वाले भरम को आम जनता भी नहीं समझती हैं। हम कहते हैं कि ये पब्लिक हैं सब जानती हैं, लेकिन भारत कि इस निरीह जनता कि पीड़ा को सुन व् समझ पाने में असमर्थ सिद्ध हो रहे हैं। इस मिडिया कि हिमाकत तो देखिये कि इसे अपने मान सम्मान कि भी चिंता नहीं हैं। एक सिख सवालाख दुश्मनों पर भारी पड़ता हैं लेकिन आज उशकी गति और मति देखिये। क्यों नहीं आतंकवाद का परचम लहराए, क्यों नहीं एक दुसरे पर कीचड़ उछलने का अवसर दे, क्यों नहीं अपने कॉलम, कौमाऔर फुलस्टाप को बेच दे। क्यों नहीं राजनेता उसे अपनी पैर कि जूती समझे, उसे क्यों नहीं सच्चाई के दम पर नाटक रचना पड़े। मिडिया में खबरे नहीं चकाचौंध, ग्लेमर बिक रहा हैं, सिनेमा इस से बहुत पहले से गुजर रही हैं, इसका वहा तो कोई हाल नहीं निकला अब आप और हम मिलकर इस पर विचार करे। शुभ होली।
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1 comment:
होली की शुभकामनाए.nice
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