Tuesday, February 2, 2010

राहुल के बिहार दौरे का निहितार्थ और कांग्रेस

राहुल गाँधी के दो दिवसीय बिहार दौरे ने बिहार के युवाओ में एक बार फिर कांग्रेस के प्रति उत्सुकता बढ़ा दी हैं। वे यहाँ कांग्रेस के युवा कार्यकर्ताओ में संभावित उमीद्वारो की तलाश करने और कांग्रेस की नब्ज टटोलने आये थे। बिहार की राजनीति से कांग्रेस के निर्वासन का लगभग दो दशक बीतने को हैं। गलाकाट आन्तरिक कलह व सुविधाभोगी राजनीति ने जेपी के चेलो को अवसर प्रदान किया। समाजवादी विचारो को लेकर चाहे लालू हो या नीतीश दोनों सता के केंद्र बिंदु बन गए। रामविलास पासवान ने स्वयं को केन्द्रीय राजनीति में ला कर चाहे जिस की भी सरकार रही उसे शुद्ध भाषा में कहे तो सिर्फ अपना उल्लू सीधा किया। राहुल के आने के समय बिहार की युवा पीढ़ी के विचारो में आमूलचूल परिवर्तन आ चूका हैं, कांग्रेस को बिहार की जरूरतों को समझाना होगा। जब कांग्रेस शासित राज्यों में उत्तर भारतीयों खासकर बिहारियों को प्रतारित किया जायेगा, बिहार की केन्द्रीय योजनाओ में मिलने वाली हिस्सेदारी में कटौती की जाती रहेगी, प्रति वर्ष आने वाली बाढ़ से निजात नहीं दिलाया जाता जिसमे केंद्र की भूमिका महत्वपूर्ण हैं तबतक बिहारी युवाओ की पीठ पर कांग्रेस की सवारी करना मुश्किल हैं। बिहार की सम्पूर्ण राजनीति के कुछ अपने अन्तर्विरोध भी हैं , इसे राहुल को समझना होगा । राहुल ने बुजुर्ग कांग्रेसियों को सन्देश दे दिया हैं की राजनीति हो या खेलनीति युवाओ को तरजीह दिए बिना आगे नहीं बढ़ा जा सकता। राहुल ने महात्मा गाँधी की कर्मस्थली भितिहरवा से अपनी यात्रा शुरू की, लेकिन गाँधी से महात्मा की राह आसान नहीं। राहुल बाबा बहुत कठिन हैं डगर पनघट की.