Tuesday, December 2, 2008

जरा सोंचे विचारें

हमारे देश की हरी भरी वसुंधरा को आतंकियों की नजर लग चुकी है। हम इतने लाचार साबित हो रहे है कि दुश्‍मनों के ठिकानों पर नजर तक नहीं जा रही है। सरहद के उस पार आतंकी बैठे कुचक्र रचते है,इस पार की सरकार तमाशबीन बनी होती है।कुटिनीतिक व राजनीतिक विफलता का ऐसा दुर्लभ नमूना अन्‍यत्र देखने को कम ही मिलता है। यह वही देश है जहां पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपनी शक्ति का लोहा पूरे विश्‍व को मनवाया था, विपक्ष्‍ा के नेता ने उन्‍हें दूर्गा के संबोधन से पुकारा था। क्‍या आज राष्‍ट्र की सुरक्षा व संरक्षा की कीमत पर ऐसी रणचंडी बनने का सौभाग्‍य किसी में नही है। हमारे देश की प्रथम नागरिक तथा यूपीए सरकार की निर्मात्री दोनो महिलाएं है।शायद इतिहास को इससे सुनहरा अवसर नही मिल सकता जब ठोस निर्णय लेकर देश के समक्ष एक अनुपम उदाहरण प्रस्‍तुत किये जा सके। हमारे देश में राजनेताओं के प्रति गुस्‍से का इजहार लगातार किया जा रहा है, ये नेता है कि मानते नहीं। क्‍या करना चाहते है व क्‍या बोल बैठते है. भारतीय लोकतंत्र बडी त्रासद स्थिति से गुजर रही है. आजादी के दीवानों ने ऐसा सोचा भी नही होगा कि एक अरब की आबादी इस कदर घुटने टेककर सिर्फ तमाशबीन बनी रह सकती है. देश की उन्‍नति की चाह रखने वाले दीवानों को अपने देश पर गर्व था, वे सर कटाना जानते थे, देश की आन बान व शान पर खतरा होने पर दुश्‍मनों को मुहं तोड जबाब देना भी जानते थे। क्‍या हिंदू क्‍या मुसलमान क्‍या सिख व क्‍या इसाई हमें अपने मादरे वतन से लगाव नही तो धर्म व अपने धर्म गुरूओं के उपर क्‍या सम्‍मान व लगाव होगा। जब हमीं न होंगे तो कौन हमारे धर्म व संस्‍क़ति की रक्षा करेगा। हमने साथ साथ जीना सीखा है साथ मरना भी जानते है। बहुत ही खूब भारतीय अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा ने इंदिरा जी के एक प्रश्‍न का जबाब देते हुए अंतरिक्ष से कहा था अपना हिंदूस्‍तान उपर से सारे जहां से अच्‍छा दिखता है। इस धरती की खुबसुरती न केवल देखने में है, बल्कि की इसकी आत्‍मा भी उतनी ही सुंदर है। कुछ जयचंदों के होने से हम इसे कलुषित न होनें देंगे। सुरक्षा को लेकर पैसे वाले पावर वाले लोगों को कोई चिंता भले ही स्‍थायी न हो किंूत भारतीय आम नागरिक सहमे सहमे से नजर आ रहे है। आने वाले चुनाव में इस खामोशी का इजहार होना जरूरी है। भारतीय जनता के पास लोकतंत्रिक अधिकार के नाम पर वोट देने की प्रमुख शक्ति है। सारे मीडिया के आकलन व नौकरशाहों की कारगुजारियों के बावजूद, राजनेताओं को जो देश की अस्मिता के साथ खिलवाड करते नजर आते है,उन्‍हें बख्‍शा नही जाना चाहिये। हमें यह स्‍पष्‍ट संकेत देना होगा भारतीय राजनीति को कि इस्‍तीफे व गैर जिम्‍मेदारी भरे बयानात के आधार पर राजनेताओं को बचने का रास्‍ता अब नहीं दिया जा सकेगा। संकट की घडी में हमने यह स्‍पष्‍ट जाना है कि चमकने वाले चेहरों के भीतर कितना डरवाना चेहरा छिपा है. ये किस कदर सिर्फ व सिर्फ स्‍व हित के प्रति सोचते व विचार करते रहते है. वेशर्मी की हद तो यह है कि ये शहीदों को भी नही बख्‍शतें है. वतन पर मिटने वालों के साथ उनके परिवारों के साथ इस कदर बर्ताव करते है कि उन्‍ा पर कुछ भी टिप्‍पणी किया जाना अपने आप में शर्मनाक है.

1 comment:

अनुराग said...

हम सभी इंसान जो इस भारत की जनता कहलाते हैं आज दुखी हैं, हमारी संवेदनाये हमरी कलम के माध्यम से स्फुटित हो रही है. लेकिन मोटी खाल वाले नेता, जिनकी शायद इंसानियत भी खत्म हो गयी है. न जाने कब समझेंगे हमारे दर्द को. सहमत हूँ आपके विचारों से .... सहमत होगा हर इंसान जिसने इस मिट्टी में जन्म लिया.
- अनुराग