Wednesday, May 21, 2008

इस देश में कई ऐसे साहित्‍यकार एवं पत्रकार हुए है जिन्‍होने हिंदी व हिंदूस्‍तान के विकास के लिए बलिबेदी पर कुर्बान हो गये. इनमें खंडवा मप्र से निकलने वाले समाचार पत्र के संपादक माखनलाल चतुर्वेदी, कानपुर से निकलने वाले हिंदी पत्र 'प्रताप' के संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी, कलकत्‍ता से निकलने वाले 'हिंदू पंच' के संपादक पं ईश्‍वरी प्रसाद शर्मा सहित कई ऐसे नाम है जिन्‍होने अंग्रेजों की मानसिक दासता से स्‍वयं को मुक्‍त रखते हुए अपने विचारों से राष्‍ट्र को अनुप्राणित करते रहे.

संपादक,साहित्‍यकार,पत्रकार पं ईश्‍वरी प्रसाद शर्मा की मृत्‍यु सन 1927 ई को कलकत्‍ता में अंग्रेजी दासता से मुक्‍त होने के बाद 23 जूलाई की अर्धरात्रि को हो गयी थी. तब देश की कई नामचीन हिंदी व हिंदूस्‍तान की सेवा में लगे कई स्‍वानामधन्‍य पत्रकारों व साहित्‍यकारों के अतिरिक्‍त विभिन्‍न पत्र पत्रिकाओं ने अपनी श्रद्वा सुमन अर्पित किये थे. उनके साहित्यिक शिष्‍य के रूप में ख्‍यात लेखक साहित्‍कार आचार्य शिवपूजन सहाये ने हम सभी का ध्‍यान उनकी ओर खींचा. जब तक जीवित रहे, अपने मार्गदर्शक के प्रति लोगों को जानकारी देते रहे फिर तो किसी ने उनकी ओर ध्‍यान देना भी मुनासिब नहीं समझा . शोधकर्त्‍ताओं के विषय व रूचि से वे गायब से हो गये. हिंदी की कभी राजधानी समझी जाने वाली कलकता के साहित्‍यप्रेमियों ने भी उन्‍हे भूला दिया. हिंदी पुनर्जागरण के अध्‍येयताओं की दृष्टि अब ऐसे कई नामचीन गुमनाम साहित्‍यकारों व पत्रकारों की ओर नहीं जाती है.

आईए, हम सब अपनी तरफ से ऐसे ही महान विभुतियों के बारे में जानने व समझने का प्रयास करें. कृतज्ञ राष्‍ट्र को उनके प्रति अपनी श्रद्वांजलि अर्पित करने की भी फुसर्त नहीं रही हम सभी देशवासियों की यह महत्‍ती जिम्‍मेवारी बनती है कि हम उनके लिए दो शब्‍द पु‍ष्‍पांजलि स्‍वरूप कहे. इस संबंध में आप सभी के विचार आमंत्रित है.

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