Monday, May 17, 2010
जातिवाद को लेकर पूरी तरह भ्रमित हैं समाज
पिछले पोस्ट को लिखने के बाद कई लोगो से बाते हुई, लोगो के अपने अपने तर्क हैं। जाति आधारित जनगणना से किसी अनजाने सच्चाई के सामने आने की उमिद्दे अधिकांश लोगो को हैं। कुछ इसे जाति के नजरिये से तो कुछ विवाह की मानसिकता से जोड़ कर अपनी तर्के पेश कर रहे हैं। आई बी एन ७ के वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष ने एक लम्बा लेख ही लिख डाला हैं। उन्होंने भारतीय मानसिकता की विवेचना करते हुए यह स्वीकार लिया हैं की हम गर्व से कहे की जातिवादी हैं। क्या दूसरी जाति में विवाह करना ही जातिवाद से अलग प्रदर्शित कर सकता हैं। सरनेम में जातिसूचक प्रतिको को हटा लेना ही इसका समाधान हैं, क्यों किसी जाति विशेष का वोट सिर्फ जाति के नेता की झोली में गिरता हैं। कई प्रश्न अनसुलझे रह्जाते हैं। जाति व्यवस्था की जड़ो को काटने की जगह एक सज्जन ने तो कहा कि होने दीजिये जनगणना , यह विकास कि दिशा में दो कदम आगे तो एक कदम पीछे जाने कि कवायद का हिस्सा हैं । तब तो कहना पड़ेगा कि आतंकी घटनाओ को होने दे इससे राष्ट्रिय एकता मजबूत होगी। मेरी दृष्टि से जो गलत हैं उसे गलत कहना होगा। जाति के आधार पर कोई नतीजा निकलने कि कोशिश बेमतलब होगी।
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1 comment:
सही कहा है आपने.
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