Saturday, May 29, 2010

दलाई लामा और शंकराचार्य का पटना प्रवास

बुद्ध पूर्णिमा के दिन पटना में दलाई लामा और पूरी पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्छ्लानंद जी पटना में थे। दलाई लामा और शंकराचार्य अलग अलग जगहों पर थे उन्होंने कई बड़े महत्व की बाते कही। दलाई लामा चूकी राजकीय मेहमान थे इसलिए उनकी बातो को मीडिया में काफी जगहे मिली लेकिन शंकराचार्य अपनी कई बाते मिडिया के माध्यम से आम जनता के बीच नहीं रख पाए। उसदिन पटना में एक भव्य स्तूप का उद्घाटन परम पावन दलाई लामा ने किया। एक और महत्व की बात हैं की बिहार फौन्डेशन के सहयोग से महाराष्ट्र से ७२ बौद्ध तीर्थयात्रियो का एक दल भी यहाँ आया था। भारत भूमि विद्वानों व धर्माचार्यो से भरी हैं । भारत में सनातन धर्म की प्रतिष्ठा किसी सत्ता के कृपा की मुहताज नहीं हैं। हा, तिन महीने में नितीश सरकार की इच्छा शक्ति से स्तूप बन सकता हैं लेकिन उसी से चार फर्लाग की दुरी पर स्थित कंकरबाग मुह्हले के लोग प्रत्येक वर्ष बरसात में डूबने को मजबूर होते हैं , तिन वर्षो से सीवरेज व् नाला निर्माण की करवाई की जा रही हैं वो आजतक पूरा नहीं हो सका। परम पावन दलाई लामा ने कहा की ध्यान केंद्र व् लाइब्रेरी बनाये लेकिन अच्छा होता की बौद्ध सायंस, फिलासफी और रिलिजन की पढाई हो। उन्होंने कहा की तिब्बत में नालंदा स्कूल के ही बुद्ध धर्म मानने वाले लोग हैं, इस नाते आप गुरु हुए हम चेला। बिहार व प्रत्येक भारतवासी को इस पर गर्व होना चाहिए कि उनके विज्ञानं व् परम्परा से दुसरे सीख ले रहे हैं। उन्होंने कहा भी कि अमेरिका व् यूरोप में मॉर्डन सायंस के तहत बौद्ध सायंस कि पढाई कि जा रही हैं। मैंने जब इश्वर तत्व की व्याख्या कोई अध्यात्मिक पुरुष कैसे कर सकता हैं पूछा तो उन्होंने सांख्य योग की विसद चर्चा की । पत्रकारों को इस प्रसन में कोई रूचि नहीं थी वे खबरों को टटोलने में लगे थे , एसा नहीं की मैंने खबर नहीं लिखी लेकिन कभी कभी जब आप महान पुरुषो के सानिध्य में होते हैं तो आपसे संजीदा रहने की उम्मीद की जाती हैं। हद तो यह हो गयी जब एक अन्य कार्यक्रम में शंकराचार्य ने धर्म और राजनीतीकी चर्चा की तब एक पत्रकार अपने ज्ञान की झलक दिखा दी। शंकराचार्य ने उसे धर्म व् राजनीती के दर्जनों पर्यायवाची शब्द और उसके अर्थ बताये। दुनिया तब भी थी जब हम और आप नहीं थे , और तब भी रहेगी जब नहीं होंगे। ज्ञान का हस्तांतरण प्रेम से हो सकता हैं , लाठी भांजने से , शोर करने से या चिल्ला कर नहीं। मिडिया कर्मी जब सूचना संग्रह कर आम लोगो के ज्ञान्बर्धन के लिए उसे प्रस्तुत करने का काम करते हैं तो उन्हें ज्यादा धैर्य धारण करने की जरुरत होती हैं .

1 comment:

Anil Varma said...

सही लिखा है आपने