Thursday, May 6, 2010
बेतुके सवालों पर नैतिकता बघारते मिडिया संस्थान
इन दिनों मिडिया संस्थानों में बेतुके सवालों पर नैतिकता बघारने का चलन सा चल पड़ा हैं। दिल्ली में एक पत्रकार आग की घटना का कवरेज करते हुए मर गया, उसके परिवार का क्या हुआ , उसकी मौत पर सम्बंधित मिडिया संस्थान ने क्या किया, आगे इस प्रकार खबरों की आपाधापी में किसी की मौत न हो इस पर कोई बहस नहीं चल रही, क्योकि वह आई आई ऍम सी जैसे किसी बड़े मिडिया संस्थान की उपज नहीं था, वह किसी के इश्क में गिरफ्तार नहीं था, उसकी पहुच बड़े पत्रकारिता की छवि से संबध नहीं थी, उसकी हत्या नहीं की गयी थी फिर उसके मौत में खबरों की टीआरपी बन्ने की कूबत नहीं थी इसलिए उसे भुला दिया गया। किसी लड़की की छवि को नष्ट भ्रष्ट कर, उसकी हत्या के लिए वातावरण तैयार कर, फिर उसकी मौत के बाद नैतिकता बघार कर आखिर लोग क्या चाहते हैं। किस संस्कृति की पैरवी कर रहे हैं। कई ऐसे भी हैं जो लडकियों का इस्तेमाल कर उसे प्रेम व् प्यार का नाम देते हैं, दुसरे को गरियाते फिरते हैं, उन्हें कोई नैतिक सम्बन्ध भी गलत लगता हैं । इनकी एक अलग दुनिया होती हैं। इसमें कोई शक नहीं की लडकिय भी जाने अनजाने उनके माया जाल में शुकून महसूस करती हैं । आखिर कैसे कोई अपने लिए एक अलग दुनिया बना लेता हैं। कानून को इसकी पड़ताल करनी चाहिए, ये हत्याए किस मानसिक दशा की उपज हैं। चाहे कोई भी दोषी हो उसे सबक सिखाना चाहिए। आजादी के नाम पर स्वछंदता, मनमर्जी की छुट नहीं दी जानी चाहिए।
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