Tuesday, February 24, 2009

स्‍लमडॉग मिलेनियर को आस्‍कर भारतीय सिनेमा के लिए चुनौती

मैं यह नही कहता कि दूसरों के द्वारा की जाने वाली तारीफ बुरी होती है। किसी भी कार्य का मूल्‍यांकन स्‍वयं तब समझ में आता है, जब दूसरे उसकी तारीफ करते है। लेकिन जब आपके कार्यो को दूसरे अर्थो में तारीफ के काबिल बना दिया जाए तो थोडी देर के लिए ठहरकर सोचना पडता है। प्रसन्‍नता के साथ हमें आत्‍म विश्‍लेषण करना होगा। यह पुरस्‍कार भारतीय सिनेमा के लिए एक चेतावनी की माफिक है। भारतीय सिनेमा के लिए जो अस्‍प़श्‍य चीज है गरीबी उसने दो करोड की राशि जी‍ती है। मैं यह नही कहता की भारतीय सिनेमा गरीबी को प्रदर्शित करने में नाकाम रही है। लेकिन यार्थाथ से कटती जा रही हिंदी सिनेमा को देखना होगा कि आखिर भारतीय दर्शकों को हम क्‍या देखने को मजबूर किये जा रहे है। ग्‍लोबलाइजेशन का मंत्र ही यही है कि जो सबसे अधिक जानकारी अपने अनुभवों से रखेगा वही सफल होगा। स्‍लमडॉग के प्रदर्शन से भद्र लोगों को शक है कि उसने चीटिंग की है। भारतीय फिल्‍मों पर आप गौर करे तो पायेंगे कि यह स्‍टॉर आधारित है। यहां के स्‍टार बडे बडे लोकेशनों पर विदेशों में शुटिंग करना बेहतर समझते है। गजनी का हीरो अपनी प्रेमिका की हत्‍या का बदला लेने के लिए तत्‍पर रहता है। वह अपनी प्रेमिका को मुगालते में रखना चाहता है इसलिए टेम्‍पों पर चढता है, अविश्‍वनीय तरीके से खलनायक के डेन में बिना हथियार के प्रवेश कर जाता है। रब ने बना दी जोडी में भी नायक स्‍टार है। आप सोचे कि बिजली विभाग का कर्मचारी क्‍या किसी सूमों पहलवान से लडकर पत्‍नी के प्रेम को पाने की जुरूत कर सकता है। बिल्‍लू बार्बर भी नायक बनता है तो इसीलिए कि सुपरस्‍टार उसका दोस्‍त है. भारतीय सिनेमा अंडरवर्ल्‍ड, भूत, महानगरीय जीवन, सेक्‍स, विवाहेत्‍तर संबंध जैसे विषयों पर सिमट कर रही गयी है. इनका उदेश्‍य एक साथ दो हजार स्‍क्रीन पर मल्‍टीप्‍लेक्‍सों पर प्रदर्शित किया जाना मात्र रह गया है. गरीबी के प्रदर्शन के अपने मायने है. हमें अपने फिल्‍मों को उन परिस्थितियों से संबंद्व करना होगा जहां जाकर आम आदमी उससे अपना जुडाव महसूस कर सके. सच्‍चा पुरस्‍कार आम आदमी के समर्थन से मिलता है. किसी आस्‍कर द्वारा समर्थन दिये जाने के बाद उसको अंगीकार करना और उसपर झूमना मुर्खता हो सकती है. हमें अपनी प्रतिभा पर भरोसा रखना होगा. निसंदेह एआर रहमान, गुलजार प्रतिभावान है. बालीवुड में अगर वे अपनी ओर से कुछ ऐसा जोड सके जिससे उसकी मुख्‍य धारा में परिवर्तन हो, वह आम आदमी से जुड सके तो यह प्रशंसनीय होगा. दूसरों की तारीफ के बाद अपनी पीठ ठोकना उचित नही है. पिंकी के लिए यह पल यादगार बन गया। उसने विदेशी चकाचौंध को अपनी आंखों से देखा। इसके पूर्व भी हमें कई आस्‍कर मिले है, लेकिन इस बार भी जो सम्‍मान मिला उससे कही कोई लगाव महसूस कर पाना मुश्किल है।

2 comments:

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर विश्‍लेषण...पढना अच्‍छा लगा।

amitabhpriyadarshi said...

लेकिन यार्थाथ से कटती जा रही हिंदी सिनेमा को देखना होगा कि आखिर भारतीय दर्शकों को हम क्‍या देखने को मजबूर किये जा रहे है। ग्‍लोबलाइजेशन का मंत्र ही यही है कि जो सबसे अधिक जानकारी अपने अनुभवों से रखेगा वही सफल होगा।
vastav men yeh sochniy vishay hai. sirf purskaron ke pichhe bhagne matr se nahi hoga, atmchintan jaroori hai.