Thursday, February 12, 2009

वेलेन्‍टाइन और युग भ्रम

'' वेलेन्‍टाइन डे'' हर वर्ष देश में एक नये आतंक का आगाज कर रहा है। कोई इसके पक्ष में तो कोई इसके विपक्ष में स्‍वयं को खडा कर अपने को समय सापेक्ष घोषित करने में लगा है। नये युग में नयी नयी सामाजिक दूश्‍चक्र व विक़तियां उत्‍पन्‍न हो रही है। इसमें स्‍वयं को उलझा कर देश का युवा वर्ग अपने आपकों नये संकट व तनावों की ओर ले जा रहा है. 21 सदी के युवा इस प्रकार के युग भ्रम का शिकार न हो, राष्‍ट्रीय मर्यादा व उन्‍नति की दिशा में अग्रसर हो कुछ ऐसा होना चाहिये। मर्यादा पुरूषतोम श्रीराम के नाम पर संगठन खडा करना, उसके बाद हिंसा उत्‍पन्‍न कर समाज के एक वर्ग में आतंक पैदा करना, फिर गलथेथरई करते हुए अपने आपकों धर्म के साथ जोडना जहां विक़त मानसिकता का द्योतक है, वही युवाओं के किसी समुह विशेष्‍ा का उसके प्रतिरोध में गुलाबी चडढी अभियान चलाना स्‍वयं में हास्‍यास्‍पद है। आखिरकार, इसका प्रतिफल क्‍या होगा। बाजार तो नये नये अवसर खडा करने की ताक में रहता ही है, आप किसी भी अभियान का हिस्‍सा बने, वह आपके आर्थिक सामाजिक दोहन में कब लग जाता है आपको पता भी नही चलता। सामान्‍य आदमी जिसे न तो वेलेन्‍टाईन से मतलब है न किसी सेना व संगठन से वह हंसता रहता है। देखिए ये दोनों किस प्रकार की मुर्खता उत्‍पन्‍न कर रहे है. कई बार हम पश्चिम सभ्‍यता की अच्‍छी बातों को नजर अंदाज करते हुए,उसकी बुराईयों की आकर्षित होते चले जाते है. संस्‍कार,शुचिता व सभ्‍य आचरण को अपने जीवन का आधार बनाने वाला भारतवर्ष, वीर बलिदानियों का देश अपना भारत, मर्यादा पुरूषोत्‍तम, भगवती सीता की भूमि, नानक व कबीर की भूमि, हीर व रांझा की भूमि,सोनी व महिवाल की भूमि में वेलेन्‍टाइन के बिना प्रेम की कोई परिभाषा नही हो सकती । क्‍या भगवान क़ष्‍ण से बढकर भी कोई प्रेम के प्रतीक हो सकते है। जिनकी बांसूरी की धून पर नर नारी, जीव जंतू, पशु प‍क्षी सब मदहोश हो जाया करते थे। वह अलौकिक प्रेम जो भगवतसता से तादात्‍मय स्‍थापित करा देता है, जहां जन्‍म जन्‍म के बंधन टूट जाते है. संत वेलेन्‍टाईन कोई त्‍याज्‍य व्‍यक्ति नही है. लेकिन सोचिए कि क्‍या प्रेम का प्रदर्शन सिर्फ गिफट लेने व देने से संपूर्ण होता है, खुले आकाश या झाडियों में बाहुपाश में बंधने से होता है, स्‍वतंत्र विचारधारा के नाम पर मर्यादा को ताक पर रखने से होता है। अगर ऐसा है भी तो क्‍या हम माने कि प्रेम प्रदर्शन की चीज है। हवा को सिलेंडर में भरकर आप आक्‍सीजन नाम देकर किसी को जरूरत मंद को जीवन प्रदान कर सकते है लेकिन जिसे स्‍वच्‍छ वायु में श्‍वास लेना हो वह सिलेंडर ढूंढे तो उसे क्‍या कहेंगे. विश्‍व को मागदर्शन देने की तैयारी में खडा भारत अगर इसी प्रकार के विरोध व तनावों में उलझा रहेगा तो अनावश्‍यक समय व उर्जा की बर्बादी से कुछ खास हाथ लगने वाला नही. आईए इससे इतर हम वसुधैव कुंटुबकम को अपनाते हुए पूरी मानवता को प्रेममय कर दें.

No comments: