Tuesday, June 17, 2008

आम जनता के प्रति कितनी जबाबदेह है हिंदी पत्रकारिता

आज मैं आप सभी ब्‍लॉगरर्स व रीडर्स के समक्ष हिंदी पत्रकारिता के मौजूदा दौर व उसके प्रति आम लोगों के नजरिये पर बात करना चाहता हूं. आखिर हिंदी पत्रकारिता आम जनता के प्रति कितनी जिम्‍मेवार है, व्‍यावसायिकता का समावेश उसे किस कदर जनता से दूर करती जा रही है. क्‍या यह सचमुच में पत्रकारिता है या कुछ और....... हमें यह ध्‍यान रखना होगा कि लोकतंत्र का इसे चौथा स्‍तंभ कहा जाता है. मीडिया सरकार व जनता के बीच एक महत्‍वपूर्ण कडी है. यह एक सॉकआब्‍जरबर की तरह कार्य करता है, इसके लचीलापन के खो जाने से इसकी महत्‍ता भी नष्‍ट हो जाती है. सरकार व जनता के बीच संवाद का यह माध्‍यम तो है ही साथ ही दोनो को अपने अधिकार व कर्तव्‍य के प्रति जागरूक भी करती चलती है. यह ठीक है कि पत्रकारिता के नये दौर में बडी बडी मशीनों व उपकरणों की जरूरत पडती है. इसके संसाधनों पर लाखों खर्च होते है. इस क्षेत्र में पूंजी लगाने वाले को जनसेवा के साथ ही मेवा बटरोने की भी उम्‍मीद होती है. तो प्रश्‍न यह उठता है कि क्‍या यह मेवा आम जनता के हित अथवा राष्‍ट्रहित को तिलांजलि देकर हासिल की जा सकती है. क्‍या ऐसी पत्रकारिता को समाज स्‍वीकार करेगा. नहीं करेगा तो फिर लाखों की पूंजी के डूबने का भी खतरा सामने हो सकता है. जाहिर सी बात है अंतिम अस्‍.त्र जनता के पास सुरक्षित है. यहां यह ध्‍यान देने योग्‍य है कि जनता स्‍वयं में एक परिपूर्ण शब्‍द है. यह व्‍यक्तियों का वैसा समूह है जो शांति व सह अस्तित्‍व में विश्‍वास करता है. इसे अपने स्‍व नुकसान की बेहतर समझ है. हम चाहे लाख किसी को दोष दे दे किंतू यह भी उतना ही बडा सत्‍य है कि आम जनता को भूल कर न तो किसी उत्‍पाद की बिक्री की जा सकती है, न कोई विचारधारा या राजनीति पनप सकती है और न ही कोई संगठन ही संचालित की जा सकती है. ऐसे में हमें जागरूक करने वाली माध्‍यम मीडिया या समाचार पत्र की भूमिका महत्‍वपूर्ण है. व्‍यावसायिक घरनों के प्रकाशन के क्षेत्र में आने से भले ही मीडियाकर्मियों पर व्‍यावसायिक दबाब बढा है,खबरों की आपाधापी में नैतिकता व अनैतिकता का भेद मिटता नजर आ रहा है लेकिन आज भी सच्‍चाई व शुचिता के साथ ही मीडिया खडा है. एक पुराना दौर भी था जब न तो बडे प्रकाशन समूह थे न खुर्राट व घोर व्‍यावसायी मीडिया वाले. छोटे से कमरे में दो चार लोग आपस में मिलकर ही हिंदी के फॉन्‍ट ठीक करते थे.मशीन मैन उसे छाप दिया करता था. संपादक व लेखक दिनरात मेहनत कर आम जनता की आवाज बनने की कोशिश करते थे. उनके भीतर समाज की बेहतरी के लिए कुछ कर गुजरने का जज्‍बा हुआ करता था. राष्‍ट्रहित में वे स्‍वयं को नियोच्‍छावर करने के लिए तत्‍पर रहा करते थे. आज का भी एक दौर है जब पलक झपकते ही दूनिया के किसी भी कोने में घटने वाली घटना पुरी जानकारी के साथ,तस्‍वीर के साथ आपके सामने होती है.
समाज में जबतक अच्‍छे लोग होंगे, कुछ कर गुजरने का माददा रखने वाले लोग होंगे, हिंदी पत्रकारिता अथवा किसी भी भाषा की पत्रकारिता हो उसके प्रति समर्पित मीडिया कर्मी होंगे तब तक वह सच्‍चाई व शुचिता के साथ खडी रहेंगी, घूटने नहीं टेकेगी. इस संबंध में मेरे निजी विचार से आप असहमत भी हो सकते है,साथ ही इस बारे में अपने विचार व भावनाओं से आप अवगत करा सकते है.

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