भ्रस्टाचार के विरोध में अन्ना के उठ खड़े होने के बाद केंद्र सरकार की फजीहत हो रही हैं। यह इतना संवेदनशील मसला हैं जिससे हर आम नागरिक परेशान हैं, मैंने खास की बात नहीं कर रहा क्योकि वे तो अपने साधन के सहारे इस परेशानी को झेल लेते हैं। कई बार तो वे भ्रस्टाचार को एक आसन रास्ता मानते हैं । अन्ना की ईमानदारी पर उनकी सत्य निष्ठा पर सवाल नहीं खड़ा किया जा सकता हैं । अन्ना की टीम ने जो मिडिया मैनेजमेंट किया वो काबिले तारीफ रहा । सरकारी अमला फेल साबित हुआ । अन्ना का भ्रस्टाचार की जड़ पूंजीवाद के विरुद्ध कुछ नहीं बोलना थोडा खलता हैं क्योकि वही तो इसे बढ़ावा देता हैं । पूंजीवाद आगे बढ़ने की होड़ में सभी गलत तरीको को प्रश्रय देता हैं। भले ही आन्दोलन का ह्रस नाउम्मीदी भरा हो लेकिन युवा वर्ग को एक नई दिशा मिली हैं । वो आगे बढ़ ने को तैयार हैं। वो किसी ऐसी व्यवस्था को नहीं चाहता जो देश के विकास में बाधा कड़ी करता हो। देश का हर नागरिक इससे मुक्ति चाहता हैं । पुरे आन्दोलन से महंगाई नेपथ्य में चला गया हैं इसे अन्ना की टीम ने गंभीरता से नहीं लिया हैं । दो जून भोजन गरीबो को नहीं मिलेगा तो वो भ्रस्टाचार की जगह अपराध का सहारा लेंगे .
Thursday, August 18, 2011
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