Wednesday, July 7, 2010

गंभीरता से मुर्खता की उत्पत्ति होती हैं......

कभी कभी बच्चे जब नादानी करते हैं तो उन्हें कहा जाता हैं कि गंभीर बनो। क्या ऐसा लगता हैं कि गंभीरता जीवन की इतनी ही नायाब जरुरत हैं। अभी एक केन्द्रीय मंत्री कमलनाथ का बयान पढ़ा। उन्होंने कहा कि योजना आयोग एसी कमरे में बैठ कर गरीबो के लिए योजनाये बनाता हैं। क्या इस प्रकार के आयोगों में गंभीर लोगो की भरमार नहीं हैं जो बड़ी ही आकर्षक योजनाये गरीबो के लिए तैयार करते हैं। उनका तो शुक्रिया अदा करना होगा कि वे उसके साथ ही अम्बानियो, मोदियो का भी ख्याल करते हैं , नहीं तो ये कम्पूटर , मोबाईल , चमचमाती कारे कहा से आती। ये सचमुच गरीबो की सुध लेते तो जगह जगह गाँधी बाबा की खद्दर ही दिखाई देती। पेट तो भरा होता लेकिन अमेरिकी सोच कहा से आती। लोगो ने उलटी राह पकड ली हैं। कमलनाथ जी विचारवान पुरुष हैं, उनकी आत्मा कभी तो सत्य को परखती हैं। इतने भारी भरकम आयोगों , मंत्रालयों का कोई मतलब भी हैं क्या जो इन्हें इस देश कि गरीब जनता अपने पीठ पर ढोए जा रही हैं। सचमुच अब तो लगने लगा हैं कि गंभीरता से मुर्खता कि उत्पत्ति होती हैं। आब कोई बाप अपने बच्चे को नहीं सिखाता - झूठ बोलना पाप हैं, बिना झूठ को सच किये आदमी अपने आप को इस दुनिया से परे पाता हैं। आज इस देश में महापुरुष मिथक में तब्दील होते जा रहे हैं। गांधीजी जैसे महापुरुष कि कल्पना करना मुश्किल होगा तो , दुनिया बिनोबा को सोच कर भी हैरत में रह जाएगी कि उसे हजारो एकड़ भूमि लोगो ने दान कर दिया था, एक मदन मोहन मालवीय जी थे जिन्होंने बिना किसी ग्रांट कमिशन के जन सहयोग से विश्विद्यालय स्थापित कर दियाउन्हें किसी आयोग कि अनुशंसा पर काम करने के लिए फंड नहीं मिला था। नियत सही हो तो कोई उदेश्य से भटका नहीं सकता। नेताजी, हमारे बुधिजिवियोगंभीर बने लेकिन मुर्खता छोड़े, आपको इतिहास माफ नहीं करने जा रहा हैं, जितने गरीबो के सिने से आह निकलेगी वह आपकी चिता कि धधकती ज्वाला को और भी जलाएगी। देखिये आप तो अभी से जल रहे हैं, इसकी tapish आपकी नींद गायब किये हैं.