Tuesday, April 27, 2010
पत्रकारिता में विचारहीनता का बढ़ता खतरा
मूल्यपरक पत्रकारिता बाजारवाद व् उपभोक्तावाद के आगे दम तोडती नजर आ रही हैं। विचारहीनता का इतना बड़ा संकट फिजा में हैं जिसके फलस्वरूप समाज का वास्तविक स्वरुप नष्ट हो रहा हैं। प्रतिदिन प्रयोग के नाम पर भोंडी बातो को मिडिया तव्वजो दे रहा हैं। पैसे का खेल न सिर्फ राजनीति, क्रिकेट बल्कि मिडिया के विकेट भी डाउन कर रहा हैं। आपके मौलिक विचारो को मिडिया में स्पेस मिलना मुश्किल ही नहीं असंभव सा होता जा रहा हैं। समाज के दबे, पिछड़े, अल्पसंख्यक व् आदिवासियों को तभी जगह दी जाती हैं जब वोट की बात हो, वे अपने हाथ में हथियार उठा ले या संघर्स के दौरान हताश हो कर आत्महत्या को मजबूर हो जाये। आपकी आवाज को इतना संगठित तरीके से कुचल दिया जाता हैं कि आपको उसका एहसास भी नहीं होता। प्रायः यह कह कर अपनी विश्वसनीयता को बचे रखने का उपक्रम किया जाता हैं कि देखीय खबरों का असर हो रहा हैं। जब आपके ऊपर विश्वसनीयता का संकट खड़ा हो जाता हैं तब उलटे सीधे प्रयोग शुरू हो जाते हैं। नियूज रूम में इतने खुरात लोगो कि भरमार हो गयी हैं कि वे अपने आगे किसी को पल भर के लिए सुनने को तैयार नहीं हैं। क्या आप आज के किसी नौजवान को अपने विचारो के साथ आगे बढ़ने देने कि कल्पना कर सकते हैं। क्यों नहीं शशि थरूर व् आईपीएल वाले मोदी जैसे लोग आनन् फानन में पैसे कमाने कि जुगत भिड़ाने में अपनी उर्जा नष्ट करे। अखबार व् सिनेमा हो या संचार क्रांति के अन्य विविध उपकरण क्या अपनी उपयोगिता समाज के व्यापक हित में प्रमाणित कर पा रहा हैं इसे सिर्फ एक तरफा विचार मानकर ख़ारिज नहीं किया जा सकता । आज भारत में ब्लड प्रेसर मापने कि कोई अपनी तकनीक नहीं हैं, विदेशी तकनीक पर आधारित मशीनों से हम अपने स्वास्थ्य को मापते हैं, दवाए उनके अनुसार ही खाते हैं, हमारी अपनी पूरी प्रणाली ही ध्वस्त हो चुकी हैं। हम हैं कि गौरव गान में ही लगे हैं। कोसी के पीड़ित, कालाहांडी के किसान, नार्थ इस्ट के मेहनती लोगो कि पीडाए हमें नहीं दिखती। लोग नकली सामानों के उपयोग के लिए मजबूर किये जा रहे हैं, बिना भ्रटाचार कि भेट चढ़े कोई कम नहीं होता, मानसिक रूप से विछिप्त पैदा हो रहे हमारे युवा को किसी दिशा का ज्ञान तक नहीं हो पा रहा । वे अपने स्वार्थ कि खातिर कुछ भी कर गुजरने को बेहतर मान ले रहे। मिडिया व् इसके माध्यम से रोजी रोटी पाने वालो को सजग होने कि जरुरत हैं.
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