पटना के भीड़ भरी सड़क पर गुरुवार को एक महिला की अस्मत लुटती रही। उसके कपड़े तार तार किए जाते रहे,
जैसे ही अखबार के दफ्तर में ख़बर पहुची सन्नाटा पसर गया। सब ख़बर के हर पहलु को जानने को बेताब हो उठे। फिर शुरू हुआ विश्लेषण का सिलसिला। कोई महिला को बाजारू बता रहा था तो कोई पुलिस प्रशासन की गर्दन नाप रहा था। कोई इस बात को समझने को तैयार नही था की एक औरत की सरेआम हो रही बेइज्जती, हम सबो के गाल पर एक करार तमाचा है। मानसिक रूप से विकलांग हो चुके युवक या एक स्त्री के बाजार तक पहुचने के पीछे हम सबो की कोई सामाजिक जिमेमेवारी है भी या नही । हद तो यह है की एक दो सज्जन तो तीसरे दिन यानि आज सरकार द्वारा भारी सामाजिक दबाब में आने के बाद आईजी से लेकर छोटे पदाधिकारियों का तबादला कर दिए जाने को भी एक ग़लत महिला के चच्कर में की गई कार्रवाई बताते रहे। प्रेम के नाम पर, पैसे के नाम पर महिलाओ का मानसिक शारीरिक शोषण करने वाले लोगो की कमी नही है। उन्हें दुनिया के हर संबंधो में सिर्फ व सिर्फ सेक्स की बू आती है। कोई मजबूर महिला मिली नही की उसका शोषण किया जाने लगता है। हद तो यह है की इसके बीच पड़ने वालो को ही बाद में अपने जान की बन आती है। व्यक्तिगत तौर पर लोगो ने किसी सामाजिक बुराई को रोकने के लिए हस्तछेप करना बंद कर दिया है। लेकिन बीच सड़क पर किसी के साथ अनहोनी होती रहे और लोग तमाशबीन बने रहे यह पचने वाली बात नही है । यह सामाजिक नपुंसकता को दर्शाता है। माना की कोई महिला ग़लत हो सकती है, लेकिन उसके साथ भी शारीरिक बल का प्रयोग करना, बीच रास्ते पर नंगा करने की कोशिश करना इसे किसी भी सूरत से उचित नही ठराया जा सकता है । शर्मनाक घटनाओ की भर्त्सना की जानी चाहिए न की उसे किसी की गलती का नाम देकर उससे पीछा छुडाना या हलके में लेना चाहिए ।
Saturday, July 25, 2009
Friday, July 24, 2009
सच का सामना कितना सच
इनदिनों बिंदास बोली, रहन सहन , फिल्म, प्रदर्शन , मिडिया के नाम पर अर्ध सत्य को सत्य बनाने की हर सम्भव कोशिश की जा रही है । एक निजी चैनल पर संचालित किए जा रहे सच का सामना शीर्षक कार्यक्रम में जी प्रकार के साक्छात्कार दिखाए जा रहे है उसे बदलती मानसिकता के नम पर परोसा जन किसी भी दृष्टी से उचित नही है। बाजार आपके घर को नंगा व् बेपर्द करता जा रहा है इसकी समझ भी रखनी होगी। सच के नम पर पोल्योग्रफिक मशीन के सहारे उलुलजुलुल प्रश्नों को रखना, उसे प्रसारित करना ग़लत है प्रवृति को बढ़ावा देना होगा। आप आखिर क्या चाहते है, सभ्य समाज की रूप रेखा आपके दिमाग में क्या है , इसे तो पहले स्पस्ट करना होगा। क्या मर्यादाओ का उलाघन ही हमारी आजादी की परिचायक है। अपने अर्ध्य सत्य को हम कबतक मशीनों के शेयर सत्य साबित करते रहेगे ।
Monday, July 20, 2009
खाद्य आपूर्ति की प्रणाली ध्वस्त
राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य वितरण की जनवितरण प्रणाली ध्वस्त हो चुकी है। गरीबो और निम्न मध्यम स्तर के लोगो के जीवन के लिए यह महत्वपूर्ण योजना है। जिस देश में ७० फीसदी आबादी प्रतिदिन १६ रूपये पर गुजरा करता हो, महंगाई चरम पर हो , वहा इस प्रमुख योजना का बेमौत मरना शोक का विषय है। हल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व न्यायाधीश दी पि बढावा की अध्छ्ता में एक कमिटी का गठन कर इसकी जाच कर अपनी अनुशंसा करने को कहा है। बधवा कमेटी ने पॉँच राज्यों का दौरा क्र के अपनी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौप दी है। शेष राज्यों का दौरा कमेटी कर रही है। आयोग का स्पस्ट मानना है की पुरी प्रणाली को दुरुस्त करने की जरूत है। बीपीएल, अन्त्योदय के नम पर गरीबो को सस्ता अनग सुलभ करना सपना हो गया है। मध्यम वर्गीय परिवारों की आधी से अधिक कमाई दो जून की रोटी के जुगाड़ में ही चुक जा रही है। अनाज के गोदाम भरे है , विदेशो से अनाज मंगाया जा रहा है, लोगो को राशन की लम्बी लाइनों में राशन किराशन नही मिल पा रही है । धोदा इधर भी देखिये।
Friday, July 3, 2009
समलैगिकता को लेकर हो रहे सब गुमराह
समलैगिकता को लेकर इन दिनों गली कूचो, कोर्ट व धार्मिक संगठनो, नेताओ के मध्य हरतरफ चर्चा हो रही है। मनोवैज्ञानिको की थ्योरिया बताई जा रही है। हर कोई अपने अपने तरीके से इसकी व्याख्या कर रहा है। कई बार हमें लगता ही नही की हम आखिर कौन सी विरासत आने वाले समय के लिए छोरे जा रहे है। जिस देश में आधी से अधिक आबादी गरीबी रेखा से निचे गुजरबसर अपना जीवन करती हो, वहा न्यायालयों, संसद, और विद्वद समाज की उर्जा समलैगिकता को अनुमति देने या न देने के निर्णय के बीच व्यय हो रही है। यौन संबंधो की उच्सृखालता न केवल सार्वजानिक तौर पर देखि जा रही है बल्कि इसने अब अनिवार्य रूप से मांगो का, धरना, प्रद्र्सनो को अपना हथियार बना लिया है। प्रकृति के नियमो का उल्लंघन करने की सजा भुगतने के लिए तैयार रहे। आपके विचारो का वहा कोई देखने वाला नही होगा। भारतीये समाज का यह विभत्स्य रूप सायद ही कभी देखने को मिला हो । धारा ३७७ को लागु करने वाला लार्ड मैकाले माना भारतीय ज्ञान व् व्यवहारों का विरोधी था लेकिन उसे इतनी समझ जरूर थी, की इस समाज के लिए क्या उचित है और क्या अनुचित। जानवर भी अपने सामान जीव के साथ सामान्तया यौन व्यवहार नही करते। असामान्य तौर पर तो कोई भी कुछ भी करने को स्वतंत्र है। १८६० इसवी से अबतक आईपीसी की धारा ३७७ लागु है, अंग्रेजो से ज्यादा खुलापन शायद देखने को मिलता है, क्या फिर से हम किसी गफलत के शिकार होने नही जा रहे है.
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