Monday, September 15, 2008

नपुंसक नेतृत्व से हल नहीं हो सकता आतंकवाद

देश की राजधानी हो या कोई अन्य प्रान्त बेरोकटोक आतंकी घटनाये घट रही है.हमारा नेतृत्व नाकाबिल हो चूका है व राष्ट्र की मर्यादा के विरुद्ध आचरण कर रहा है. यह कौनसी सी मज़बूरी है की आतंकी घटना राष्ट्रीय राजधानी में घट जाती है और हमारे खुफिया तंत्र विफल साबित हो जाते है ,हमारे राजनेता वोटो की राजनीती में लगे रहते है . इस मसले पर शायद ही किसी विद्वान या संवेदनशील नागरिक ने अपने विचार व्यक्त नहीं किये हो.हमारे राजनेता किसी भी मसले को इतना खीचते है की वह बदबू देने लगता है.क्या भारत सरकार को पता नही की देश में किस तरफ से कितना घुसपैठ हो रहा है.पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अबुल कलाम का स्पस्ट मानना है-आतंक को रोकने के लिए केंद्र व राज्य का एकीकृत संयुक्त खुफिया तंत्र जरुरी है,साथ ही घुसपैठ रोकने के लिए एकीकृत सीमा सुरछा प्रबंधन की आवश्यकता है.सीमा पर आधुनिक सेंसर प्रणाली लगाना ,इन्फ्रा आधारित कैमरा लगाकर सखत नियंत्रण किया जाना चाहिए .उन्होंने सीमा सुरछा बल को सुझाव दिया है की इसरो द्वारा विकसित उपग्रह ,जो एक मीटर तक की छोटी जगह को भी देख सकता है उसे सीमा पर चौकसी में उपयोग करे.सवाल यहाँ यह है की एसा किये जाने से कौन अधिकारी या राजनेता रोकता है उसे चिन्हित किया जाना चाहिए.सर्वोच्च नयायालय की टिप्पणी है -लाखो लोगो का कोई जनसमूह जब किसी देश में अवैध रूप से प्रवेश कर जाता है तो यह एक प्रकार का आक्रमण है.इस आक्रमण से देश की सुरछा की जिमेदारी केंद्र सरकार की है . असम की ८२ लाख हेक्टेयर वन,भूमि,जनजातिय भूमि पर घुसपैठियों का कब्जा है.काजीरंगा नेशनल पार्क में हाथी और गैंडे की जगह बंगलादेशियों की झोपरिया दिखाई देती है.इस इलाके के छोटे बड़े व्यवसाय पर इनका दखल है.एक रिपोर्ट के अनुसार बांग्लादेश को प्रतिदिन २० हजार गाय तस्करी होती है.बांग्लादेश में लगे मलेशिया के कत्लगाह से १,८७,००० टन गौमांश का निर्यात होता है ,जिससे सालाना ३०० करोड़ की आय होती है.हथियार,जाली नोट मादक व नशीले पदार्थ,एक रुपया के सिक्के की खास कर,क्योंकि इससे दो ब्लेड बनती है जो पांच रूपये में बिकती है. क्या भारत सरकार को यह सब कुछ नहीं पता है,नहीं है तो किसकी जिम्मेवारी है पता करने की.पाकिस्तान को लेकर कई बार चिंताए व्यक्त की जा चुकी है, क्या हमारी आंतरिक सुरछा नीति,विदेश नीति की समीछा कर इसे धारदार बनाने की जरुरत नहीं समझ में आती है.कबतक हम अपने भाई बहनों का लहू बहता हुआ देखते रहेंगे.आतंकी घटना के बाद जब एक घंटे के अंदर कोई गृह मंत्री तीन बार कपडे बदलता हो,उसे बैठको में हालत की समीछा कर त्वरित निर्णय लेने की सूझ भला कैसे हो सकती है.सत्ताधारियों को खुफिया एजेंसियों को विरोधी दलों के पीछे लगाने की बजाये, राष्ट्र की सुरछा में लगाना होगा. अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब आम लोगो को ही नहीं बल्कि हर उस शक्श को अपने खून से स्वतंत्रता की कीमत चुकानी होगी.

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