Saturday, September 6, 2008
बिहार में बाढ़
राष्ट्रीय आपदा की इस घडी में न जाने क्यों लोगो को जब भूमि विवाद चाहे वह सिंगुर का हो या अमरनाथ श्राइन बोर्ड का ,में उलझे देखता हु तो कुछ अजीब सा लगता है . क्या हम इतने संवेदना शून्य हो चुके है की जब देश में एक ओर लाखो की आबादी जीवन व् मृत्यु के दौर से जूझ रही है वैसे समय में हम अपने अपने स्वार्थ में लिप्त है .बिहार के बाढ़ प्रभावित जिलो में जाकर देखे कैसे हिन्दू मुसलमा एक साथ बैठ कर भोजन व् भजन कर रहे है .इस विपदा ने बड़बोले चेहरों को भी उजागर कर दिया है .खैरात में भीख दी जा सकती है ,लोगो की पीडा कम नहीं की जा सकती .बच्चे अनाथ हो चुके है ,कितनो का सिंदूर धुल गया है ,जीवन जीने का आधार छीन गया है यहाँ जो भी राहत सामग्री पहुच रही है उसे कोई सही तरीके से जरूरत मंदों तक पहुचाने वाला नहीं है .संकट के पल में हमने जीना सिखा है चाहे वह आतंकी घटनाये हो या प्राकृतिक आपदा लेकिन हमें धैर्य पूर्वक एक दुसरे का सहयोग तथा साथ देना भी सीखना होगा .कोसी की विनाशकारी लीला ने दो पीढियों बाद अपना रौद्र रूप दिखाया है .तब से अबतक नेपाल का रूप भी बदल चूका है .हमें अपने देश के नौनिहालों की चिंता करनी होगी अन्यथा याद रखे बड़े बड़े तानाशाहों व् हुक्मरानों को भी इतिहास भूलने में देर नहीं करता .जीवन की एक ही गति है सब को यहाँ सबकुछ छोड़ कर चले जाना है ,अपनी आदतों में सुधार नहीं लाये ,अपनी प्रवृत्यो को नहीं बदले तो इतना निश्चित मानिये की प्रकृति आपको स्वयम ही सुधार देगी .राष्ट्रीय संकट की इस घडी में संकट को वोट बैंक में बदलने अथवा इस में लूटपाट कर अपना घर भरने वालो सावधान हो जाये कही कोई है जो सबको देख रहा है . आइये , इस संकट को हम अवसर में बदल देने की कला सीखे .हम स्वयं में छिपी हुई मानवीय गुणों को विकसित करे .संकट की घडी में अफवाह फैलाने वालो से सावधान रहे .मीडिया भी खबरों की आपाधापी के बीच धैर्य बरते .जब चाहे बांध टूटने या फिर उसके नहीं टूटने की चर्चा न करे .डैमेज कंट्रोल के लिए जो भी बन पड़े किया जाना जरूरी है .राहत के पहुच रहे सामानों को सही हाथो तक पहुचाने में मदद करे .अफरातफरी की जो स्तिथि बनी हुई है उसे दूर करना होगा .आपदा के कारण उत्पन्न मनोवैज्ञानिक पहलू पर ध्यान देते हुए लोगो को उबरने में मदद करना होगा .
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