Wednesday, June 30, 2010
भूमि सुधार के मुद्दे पर बिहारी राजनीति असमंजस में
बिहार में विधान सभा चुनाव होना हैं, इसके लिए विभिन्न दलों के रणनीतिकार अपने दिमागों पर बल डालना शुरू कर चुके हैं। कोई भी प्रमुख राजनीतिक दल जहा भूमि सुधार के मुद्दे को उठाने से घबरा रहे हैं वही जन संगठनो व् वामपंथी दलों द्वारा इसे जोर शोर से उठाया जा रहा हैं। बिहारी राजनीति में भाजपा और जनता दल उ पहले ही इस मुद्दे पर अपनी हाथ जला चुकी हैं। किसी में इतनी ताकत नहीं दिख रही की वो भूमि सुधार के मुद्दे पर जनता का मत प्राप्त करे या कोई नयी दिशा में बढ़ सके। हद तो यह हैं की बिहार में भूमि के रिकार्ड का रख रखाव की स्थिति बेहद दयनीय हैं। भूदान के जमीनों का अधिकांश जिलो में कोई रिकोर्ड नहीं हैं, कई जमीनों को सर्वे के दौरान उलट पुलट कर सरकारी घोषित कर दिया गया हैं। सरकार के नियमो के तहत जमीं मालिक को स्वयं इसे साबित करना हैं। हजारो एकड़ जमीनों पर अवैध कब्ज़ा हैं। २० से ३० फीसदी खेती करने वाले दुसरो के खेत जोतते हैं। लाखो लोगो के पास रहने को घर नहीं हैं।
Wednesday, June 23, 2010
इज्जत की खातिर मौत की बढती रफ्तार
इन दिनों भारत वर्ष में इज्जत की खातिर मौतों की रफतार बढ़ गयी हैं। भारतीय समाज संक्रमण के काल से गुजर रहा हैं। इसे पाश्चात्य संस्कृति ने अपने रंग में लेना शुरू कर दिया हैं , कई मामलो में तो हमने आंखे मुंद कर इसे अपना लिया हैं , कई बार यह स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं कि आखिर हमें किस राह पर जाना हैं। सवाल यह हैं कि आदिम व् बर्बर युग से निकल कर ज्ञान और विवेक की ज्योति बिखेरने वाला भारत आज इज्जत की खातिर अपनी ही संतानों को मरते हुए देखने को विवश क्यों हैं । हमारी मानसिक दशा ऐसी बन कर क्यों रह गयी हैं कि हमें क्यों एक लड़की का अपने भविष्य को ले कर लिया गया निर्णय आत्मघाती प्रतीत होता हैं। क्यों परम्पराए टूट व् बिखर रही हैं। सवाल उपभोक्तावाद व बाजार के दायरे में रख कर समझा जा सकता हैं। किसी एक लड़की का निर्णय पुरे समाज को किसी खतरनाक निर्णय के मोड़ पर कैसे पंहुचा दे रहा हैं। स्वछंदतावाद ने समाज परिवार, कुल की अन्तत कहे तो देश कि मर्याद को तार तार कर के रख दिया हैं। क्या किसी अंकुश कि जरुरत आज के भारतीय समाज को नहीं रह गयी हैं। यह ठीक हैं कि बालिग हो चुके नौजवानों को अपने निर्णय कि छुट होनी चाहिए , उन्हें अपने भविष्य को लेकर किसी से शादी करने का पूरा अधिकार हैं। लेकिन क्या हम एक बड़े समाजिक समूह कि खुशियों को नजर अंदाज कर स्वयम खुश रह सकते हैं। क्या हम ऐसे समूहों का निर्माण करना चाहेंगे जिस में हर कोई स्वछन्द हो। अरे मेरे भाई, जानवरों से भी कुछ सीखो कि उन्होंने किस प्रकार से अपने समाज को व्य्वाश्थित कर रखा हैं । कभी उसका उल्लंघन नहीं करते। इज्जत की खातिर हो रही मौते किसी भी समाज के लिए एक कलंक हैं , इसे जायज नहीं ठराया जा सकता। हमें अपनी संतानों को समझने में कही भूल हो रही हैं। प्यार को नफरत से जीता नहीं जा सकता। इसे प्यार से ही हल करना होगा। बेतुकी बातो से ऊपर उठ कर हमें नौजवानों को नयी दिशा देनी होगी। हमारे रीती रिवाज इतने दकियानुशी नहीं हैं जो किसी समस्या के संधान की दिशा नहीं सुझाते, जरुरत उन्हें समझाने की हैं, खुद भी समझने की .
Saturday, June 12, 2010
नितीश और नरेन्द्र मोदी की तस्वीर ने बया की तल्ख़ हकीकत
हकीकत से बाबस्ता होना कभी कभी बेहद खतरनाक सिद्ध होता हैं। खासकर, राजनीतिक दृष्टी से जब सिधान्तो व् उसूलो से जब अलग रिश्तो की बाते होती हैं, तो जबाब देते नहीं बनता। आज के दैनिक में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की तस्वीर नरेन्द्र मोदी के साथ क्या छपी मनो भूचाल आ गया । छिपाए छिप नहीं रहा न दिखाए दिख नहीं रहा। भाजपा की यहाँ राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक चल रही हैं , इसमें भाग लेने भाजपा के सभी दिग्गज नेता आये हुए हैं। देश की नीतिओ के निर्धारण के लिए ये जिम्मेवार होते हैं , आपस में ये इस प्रकार अछूतों की तरह वयवहार करते हैं लेकिन जब सत्ता में साझेदारी की बाते होती हैं तो गलबहिया डालने से इन्हें इंकार नहीं होता।
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