Tuesday, December 20, 2011
भिखारी के गांव में अनगढ़ कला का सौन्दर्य बोध
" जा उधो अतने सुधि काहीह, तनिको सहत नइखे पीर,कहत भिखारी बिहारी न आइले, फूटी गईले तक़दीर " गीत की प्रस्तुति और लाल जैकेट में लोक मंच पर विदेशिया की भूमिका में उतरे ८० वर्षीय गोपाल जी, बटोही शिवलाल व् प्यारी सुन्दरी बने लखन मांझी ने जब समा बंधा तो शामियाना में ठिठुरते दर्शको के बीच उत्साह का संचार हो गया , तालियों की गूंज उनकी गर्म जोशी को व्यक्त करने लगी। इसके पूर्व " लव कुश के सामने सब के टूटल अभिमान- भगवान भगवान के बोल पर झाल व तबले की थाप लगी तो मुबई फिल्म इंडस्ट्री के नामचीन कलाकार भी अपने को रोक न सके । सबके पैरो और उंगलियों की थिरकन सी आ गयी। मौका था लोक चेतना के महान विभूति भिखारी ठाकुर की १२४ वी जयंती पर उनके गांव कुतुबपुर में सांस्कृतिक महोत्सव का। मिटटी की खुशबु, भोजपुरी की खनकव् लोक कलाकारों का भिल्हारी ठाकुर के प्रति अनन्य श्रधा की बानगी देखते ही बन रही थी। कुतुबपुर में अनगढ़ कला का अनुपम सौन्दर्य बोध हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। पटना मुंबई की चमक दमक से दूर दियारा छेत्र में गांव गवई के बीच स्थानीय भाषा में उठी यह सांस्कृतिक गूंज विरासत के प्रति अनन्य आस्था को अभिव्यक्त कर रही थी।
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