Thursday, November 17, 2011
१०० वर्षो बाद बटवारे की राजनीति
आज से ठीक १०० वर्ष पहले १९११ में ब्रिटिश हुकूमत ने अपने स्वार्थ के मद में अंधे हो कर बिहार के विभाजन का निर्णय किया था, १९१२ में बिहार बंगाल से अलग हो गया। थोडा पीछे देखे तो १९०५-०६ में बंग भंग के विरोध में एक लहर सी देश में उठी थी। आज भी हम उसी मानसिकता में जी रहे हैं। छोटे राज्यों की हिमायती कम नहीं हैं इस देश में लेकिन क्या हम राज्यों के विभाजन से प्रदेश के विकास की कल्पना कर सकते हैं , यह एक प्रश्न चिन्ह हैं। फिर से उत्तर प्रदेश को चार भागो में बाटने की कोशिश की जा रही हैं। क्या कोई विजित या विजेता राष्ट्र की तरह लोकतंत्र को हाक सकता हैं। देश पहले ही १९४७ में एक बड़े बटवारे का दंश झेल चूका हैं। इसके बाद भी राज्यों का पुनर्गठन किया गया हैं। क्या सभी विभाजित राज्यों के विकास अथवा पिछड़ेपन को ले कर कोई स्वतंत्र अध्ययन हुई हैं। विभाजन के अतिरिक्त क्या कोई अन्य उपाय नहीं हैं । आज झारखण्ड, छतीसगढ़ व् उतरांचल के विकास की रूपरेखा क्या संतोषप्रद हैं। सिर्फ राजनितिक स्वार्थ के लोभ से सब कुछ बाट देना कहा तक उचित हैं। राजनीतिक लोगो से भी गुजारिश हैं , बंद करे यह बटवारे की राजनीति। एक गाना यद् आता हैं - इस दिल के टुकड़े हजार हुए कुछ यहाँ गिरा कुछ वहा गिरा। कभी तो एकता, विकास और मुल्क की तरक्की की बाते करे। आजादी के ६० सालो बाद भी हम कहा हैं , इस देश में महात्मा गाँधी की सोच और सपनो का भारत कहा हैं , इसे ढूंढे। आधुनिकता की अंधी दौड़ में देश को रसातल में न ले जाये। अमीरी और गरीबी की बढती खाई आज १०० गुनी चौड़ी हो गयी हैं। इसे पाटने का प्रयास करे
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