Wednesday, June 8, 2011
पत्रकारिता की दशा- दिशा और वर्तमान भारत
भारतीय राजनीति जिस परिस्तिथी से गुजर रही हैं वहा भारतीय पत्रकारिता अपने लिए जगह नहीं बना पा रही हैं। ऐसी मजबूरी भारतीय पत्रकारिता को पहले कभी नहीं झेलनी पड़ी थी । इसका एक मात्र कारण हैं , जन समस्याओ से मिडिया का कटते जाना । जब कार्पोरेट घरानों की गोद में देश की राजनीति और मिडिया खेलने लगे , चमकते चेहरों के बीच आम आदमी की दुश्वारिया बढती जाये तो फिर क्यों कर देश भक्ति की राग अलापी जाती हैं पता नहीं । मन दुखी हो जाता हैं जब यह सोचता हू की गुलाम भारत में कम पढ़े लिखे नेताओ में भी विजन था, पत्रकारिता भी निष्ठावान थी अपने धेय के प्रति। भारत में प्रतिभा का विस्फोट हो रहा हैं, सुचना क्रांति के युग में हम पहुच चुके हैं, वैश्विक राजनीति में परिवर्तन आ चूका हैं फिर भी हम हैं की सुधरने का नाम नहीं ले रहे। कौन सा स्थायी महल बना लेंगे, कौन सी स्थायी कीर्ति अर्जित हो जाएगी जो अमिट होगी। इस पल पल नाशवान धरा में जब हम अपने बंधू बान्धवों के साथ थोडा सुकून से न जी सके , एक दुसरे के कम न आ सके तो दरिद्र में नारायण को न पा सके तो फिर कहे की मारामारी। ये कनिमोंझी, ये २ जी स्पेक्ट्रम और राजा, कलमाड़ी एक नहीं कई अपने आस पास ही दिख जाएँगे। हमने अपना राष्ट्रिय चरित्र ही बेच दिया हैं। किसी मौके पर तो वेश्या भी apna घुंघुरू तोड़ देती हैं मगर ये हमारे नेता और टीवी, नोट और दारू की बोतल पर पंचायत से संसद तक के लिए वोट बेचती जनता.... विकट हो गया हैं भले आदमी का जीना. आन्ना हजारे हो या बाबा रामदेव जिसे वतन पर फिदा होना हैं उन्हें ....सब को लंगोटी धारण कर भारत माँ की मर्यादा को बचाना होगा .
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