कला मर्मज्ञ व् उसकी बारीकियों की समझ रखने वाले भी इस बात की गवाही देंगे कि फिल्म पा ने मनोरंजन के साथ साथ बिमारियों के प्रति समाज की समझ को गंभीरता प्रदान की है। अमितजी की अभिनय के प्रति समर्पण देखते बनती है। खैर, आज की हिन्दी फिल्मो को लटके झटके से दूर गंभीर मसलो के प्रति ध्यान देने के लिए बखूबी प्रयास शुरू कर दिया गया है। खासकर, आमिर खान की कमजोर मानसिक बचचो को लेकर कुछ दिनों पूर्व आई फिल्म तारे जमी पर इसी तरह की एक संवेदनशील तस्वीर प्रस्तुत करती थी । जब हमारे फिल्म निर्माता करोडो रुपया फिल्मो के निर्माण में लगाते है तो उन्हें एक बेहतर समाजोपयोगी फिल्मो के निर्माण से गुरेज क्यूकर होता है समझ में बात नही आती। अच्छे भवन निर्माण की सभी तारीफ करते है, चाहे उसमे रहने वाले हो या उसे बहार से निहारने वाले। खासकर समाज के सबसे उपेछित विकलांग चाहे वह मानसिक हो या शारीरिक उनके भावनाओ व् संवेदनाओ को जब जब आवाज दी जाती है, समाज का हर वर्ग उससे अपना लगाव महसूस करता है। हद तो यह है की सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों में एक मानसिक विकलांग आरोग्यशाला स्थापित करने का निर्देश दे रखा है लेकिन कई ऐसे राज्य है जहा यह सुविधा सरकारों के द्वारा मुहैया नही करायी जा सकी है। हम रोजाना न जाने कितने ऐसे मामले रोज देखते है और सुनते है, लेकिन विकलांगो पर रहम बस उस श्मशान की अनुभूति मात्र होती है जैसे एक लाश फुकने के बाद शायद अब हमें तो मौत आयेगी ही नही। शारीरिक सौन्दर्य की अपनी एक सीमा है, लेकिन मानसिक तौर पर असुंदर लोगो की पहचान कौन करेगा , उन्हें स्वास्थ्य और सुंदर होने को कौन प्रेरित करेगा। हमें अपनी ओर और अपने आसपास भी नजर दौड़नी चाहिए।
उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी के पटना दौरे की कवरेज करने के बाद थक सा गया हु, उनके विचारो पर भी खासा लिखना चाहता था, फिर कभी .....
Saturday, December 12, 2009
Subscribe to:
Posts (Atom)