Saturday, April 25, 2009
कैसे करे नेताओ पर भरोशा
१५ वी लोकसभा के गठन के लिए चुनाव अभियान तेज हैं । नेताओ के बीच गलाकाट प्रतिस्पर्धा जारी हैं । इनके बयानों के निहितार्थ निकलना मुश्किल हैं। जनता की मुलभुत समस्याओ से अलग बोलने में ये माहिर हैं। इनके चाल व् चरित्र को जागरूक मतदाता समझ रहे हैं। कई नामचीन नेता लाखो करोडो रूपये मतदाताओ के बीच वाट रहे हैं। कोई देखने वाला नही हैं। नोटों पर बिकने वाली जनता को इनके द्वारा किए जाने वाले लूट पर बोलने का क्या अधिकार हैं । जनता को प्रतिकार की भाषा सिखानी होगी। उन्हें मतदान के दौरान मतदान अधिकारी से किसी भी पसंदीदा उमीदवार के न होने पर अपना अभिमत दर्ज करना चाहिए आख़िर नेताओ पर जनता कैसे भरोसा करेराजनितिक दलों ने गठबंधन तैयार करे लिया हैं सत्ता में हिस्सेदारी के लिए । दुर्भाग्य यह हैं की किसी भी गठबंधन की और से कोई संयुक्त घोसना पत्र जारी नही किया गया हैं । कौन चुनाव बाद किस करवट बैठेगा कहना मुश्किल हैं । भारतीय लोकतंत्र के तारीफ करने वाले ग्रामीण क्षेत्रो में जाकर मतदान के पूर्व की हालातो का जायजा लेना चाहिए । २३ को मुजफ्फरपुर लोकसभा क्षेत्र में था । जार्ज को कैसे राजनितिक रूपसे भुला दिया गया
Wednesday, April 8, 2009
नोट, जूता और भारतीय राजनीति
सर्दियों का मौसम समाप्त हो चूका है, गर्मी का प्रकोप बढाने लगा है. चुनाव के इस मौसम में क्या नेता क्या पत्रकार सभी की त्योरिया चढी हुई है. अभिनेता परदे पर चरित्र बदलते थे, अब तो लगे हाथ उन्हें भी पाला बदलने का मौका मिल गया है .कई दिनों से चुनाव कवरेज़ में लगे होने के कारन ब्लॉग के लिए अलग से लिखना मुस्किल हो रहा था. खैर, नेताओ के नोट बदलते हाथो के बीच एक पत्रकार के हाथो में जूता देख कर मन ग्लानि से भर गया. इसी तरह से देश का हर नागरिक अपनी मर्याद की सीमाए लांघता फिरेगा तो काहे का लोकतंत्र व काहे का चुनाव. हथियार उठाने वाले हाथो को जूता उठाने वाले हाथ भला कैसे रोक सकते है. राष्ट्रिय राजनीति तथा पत्रकारिता की नीव हमारे पुरखो ने इसी लिए रखी थी. अब तो सोचने का वक्त आ गया है की, २५ करोड़ की आबादी के लिए अपनाया गया लोकतंत्र क्या एक अरब से अधिक भारतीयों के लिए मुनासिब नहीं रह गया है. पश्चिम से क्या जूता संस्कृति तक आयात करने की मानसिकता वाले हम हो गए है.सत्य का सामना करने का साहस हमारे अन्दर नहीं रह गया है. देश का सौभाग्य है की १५ वी लोकसभा के लिए सबसे अधिक मतदाता युवा वर्ग से है. क्या एक बार अपनी मातृभूमि के लिए अपने आने वाले सुनहरे कल के लिए जाति,संप्रदाय, छुद्र राजनीति से ऊपर उठाकर देश के नव उत्थान के लिए संकल्पित हो कर स्वच्छ छवि के उम्मीदवार को संसद के अंदर भेजने का प्रयास नहीं कर सकते. नोट बाटने वाले हाथो से धन लेकर फिर उन्हें सार्वजानिक धन लुटने का अवसर प्रदान करना कितना खतरनाक है इसकी कल्पना करना मुश्किल है. भ्रष्टाचार को सार्वजनिक व सामूहिक रूप प्रदान करना राष्ट्रद्रोह है. भूख,गरीबी व लाचारी को पैसे से कीमत अदा कर के अपने निजी उपयोग में लाना, ओछी मानसिकता है. चुनाव आचार संहिता का बार बार उलंघन किया जाना संगेये अपराध घोषित किया जाना चाहिए. किसी जर्नलिस्ट को भी किसी व्यक्ति विशेष के साथ आभ्द्रतापूर्वक पेश आने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है. महात्मा गाँधी, राजेंद्र प्रसाद सहित कई शहीद पत्रकारों ने अपने खून पसीने से पत्रकारिता को सीचा है.
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